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उपदेश
सप्ततिका.
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जो सुमइ पिठ वञ्चय मुहणंतयमस्थि बीयमेयस्स । अहियपरिग्गधरणेथेस धुवं ताव उस्सीखो ॥४०॥ परिमियपरिग्गहेहिं होय निच्चमेव साहहिं । इणमवमनियमरहंतवयणममयब महुरयरं ॥४॥ नायममुणा खु एयं जश् एगा पुत्तिया गमिस्सइ मे । होहामि ता कहमहं ईसिं गणि न वयलंगो ॥५॥ कचं निवसणंगंगणाइ अश्वघरूवतणुखा। सुचिरं निज्जाश्य खोयणेहिं नालोश्यमणेण ॥ ५१॥ एएण संपयं चि (त) य तह लोया नियेण हत्येण । गहिन अदिनगरो सारो गमि चरित्तस्स ॥ १३ ॥ तुमए दिमिमंपि हु कवं सूरोदएं अजाएऽवि । जो जग्ग दिखेसो वच्चामो तुरियमुह ॥ ५३॥ एयंपि ताव सेयं श्रवन एएसि जिङ सेहो । रत्ती श्रज सुत्तो अट्टकाणी अणुवउत्तो॥ ५४॥ विङ्कए फुसिएणवि कप्पग्गहणं कयं न एएण । तहय पनाए मग्गे कप्पग्गेणं च हरियतणं ॥ ५५॥ निस्संकं संघट्टियमणेण सीवेदगंपि परिनुत्तं । पवणस्सवि संजाया विराहणा मुधजावेण ॥ २६॥ पायजुयं अपमझिय संकमिर्ड एस खारमिझं । पहपमिवन्नेण ज जयणा करसयबहिं गंतुं ॥ ७॥ इरिया पमिक्कमणं निहि जीयकप्पसुत्तम्मि । गंतवचियिबे सश्यवे श्रासियबे य ॥ ५० ॥ तह चेव वट्टियवं बक्कायजियाण न हु जहा बाहा । पवश्याणमिमेसि चरित्तखेसोऽवि न दु दिशे॥ एए॥ मुहवंतगपमिलेहं कुणमाणो अविहिणा पुणो अजा । सो चोङ मए जो साहु कह कुणसि पमिखेहं ॥६॥ फाफमसहेण पमे विराहणं वाजणो न दु गणेसि । कहमणुवनचचित्तो परमत्यपसाहगो होसि ॥६१॥
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