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________________ ECORROR नाणानिग्गहधरणं सुबुच्चरं चरणमणुसरंताएं । निम्मंससुक्कसोणियदेहाण तहा निरीहाणं ॥३४॥ जेसिं दंसहमवि पावखेवखित्ताण कुण पावित्तं । तेसिं कुसीखनाम निरग्गखं जं समुसवसि ॥ ३५॥ सुछ तुह सावगत्तं नासासमिश्क्षयाइ का वत्ता । मुहरमुहे तम्मि य पयंपए नाश्खो श्रह तं ॥३६॥ कहमुत्ताणोऽसि तुम बाहिरवित्ती जाय साहूणं । दंता गयाण बाहिं जिन्ना अन्ने वयणमने ॥ ३७॥ एए बालतवस्सी अवस्समीसाविसायविसयपरा। किमकामनिकराए फलं खु अन्नाणकहिं ॥३०॥ उस्सुत्तपयं गरुयं साहूणेयाण तं न याणेसि । अन्नं च न मणयंपि दु मह रोसो जवरि एएसि ॥ ३ए॥ गिएहामि जेण दोसे किं तु मए नेमिसामिणो पासे । श्राइनियमेरिसयं जं न कुसीला दु दवा ॥४०॥ तो सुमणा पलवियं निबुद्धी तुम खु जारिस । तारिस तित्थयरो सोऽवि परूवे जो एवं ॥४१॥ दुब्नासिरस्स एवं सहोयरस्सप्पणो गुणोयहिणा । सिरिनायखेण पिहियं वयणं निय दोहिं हत्थोहिं ॥४॥ जणियं च जद्द मा रुद्दनिछुरेहिं खरेहिं वयणेहिं । जगगुरुणो तित्थगरस्स कुणसु श्रासायणं गरुकं ॥४३॥ अहवा जणसु जहिलियमहयं वारेमि नो तुम जाय । तो सुमई वजरई एएऽवि जया महारिसिणो ॥४॥ इंति कुसीला धणियं ता श्रन्नो कोऽवि नत्यि दु सुसीखो। जइ सीयलं न सखिख ता श्रग्गी चेव संजव॥४५॥ तो नायखेण जणियं जिणवयणाणुगयबुद्धिषो धीरा । नो बाखतवस्सीणं किरिया सुप्पसंसंति ॥ ४६॥ खेसोऽवि दुदिलाए एएसुन विजाए मुयमएणं । दीसंति नणु कुसीखे बाहिरचरिया नियमेषं ॥४॥ 159 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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