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________________ पदेश सप्ततिका. ॥३१॥ वीरो वागर पडू बहसवेहिं सुरेहिं महियपर्छ । एयं जाणसु गोयम संजायं पासतित्यम्मि ॥१४४॥ तो पुजेश पहुं पुण जगवं सिरिगोयमो नमो किच्चा । एयारिसमश्योरं कई मुहं पावियं तेण॥१४५।। जाए थीसंघट्टे तेहिं पञ्चारिए रिजमुणीहिं । उस्सग्गुववाएहिं नि जिणिंदागमो एसो ॥ १६॥ एगंतं तं मिला जिणाणमाणा हवा अणेगंता । श्य वयणपरूवण तेणजियमश्वणं कम्मं ॥ १४ ॥ एवं पहुणा नलिए उसवियं गोयमेण पुष एयं । जयवं किं उस्सग्गाववायमग्गे यिं न सुयं ॥ १४॥ गोयम उस्सग्गंमी श्रववाए वट्टए खुसियतं । जणियमणेगंतं पुण वत्युतिगे नवरमेगंतं ॥ १४॥ श्राजक्कायारंजो तेजक्कायाण तह समारलो। मेहुणसेवा य तहा पमिसिहा वीयरागहिं॥ १५०॥ निय निन्जय बाढं सवप्पयार बाढं। एगंतेणं वजियमवालूयं तियमवस्सं ॥ १५१ ॥ इत्थं सुत्ताश्क्कमसम्मग्गविलोवर्ड कुमग्गस्स । श्रश्नक्करिसो रश्न त जिणाणा जंगो य ॥ १५ ॥ तत्तो भयंतसंसारियत्तणं विहियमप्पणो तेण । तत्तो बहुप्रकपरंपराइ संघट्टमावमियं ॥ १३ ॥ सावडायरिएणं किं नयवं मेहुणं समाइन्न । अरंक सामी गोयम निसेवियासेवियं तं च ॥१५॥ नो सेविय नविय असेवियं च कहमेवमस्कियं सामितीए अजाए पाए संघमाणीए ॥ १५५॥ तणुफासे जाएऽवि दुन तेण आलंटियं न संवरियं । न मणागपि निसिचश्मेण खलु सूरिणा जम्हा ॥१५६॥ एएणं अषं गोयम एवं पवुच्चई नवरं । इत्तियमित्तस्सवि धुवमेरिस कक्विागो जं॥१७॥ 142 AAAAAAACSROCACA ॥ १॥ Jain Education in For Private & Personal use only X w w.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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