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________________ - उपदेश 26. सप्ततिका. तस्सेव बाखगस्स य दवावियं दविणजायमखिखपि । पंचसयाएं सो नाइत्तं सूखाण पाखे॥११७ ॥ कुणमायो तारिसजीवघायपमुहाई पावकजाई। पंचतं पावित्ता पूरित्ता पायगेणप्पं ॥ ११०॥ गोयम सत्तमपुढवीश्रपयाणम्मि पत्थमे पत्तो। सावजायरियजिउँ पर(रि)वरि पावकम्मेण ॥ ११॥ तित्तीससागराइं तत्व पगाढाउ घोरवियणा विसहंतो ऽसहा जबट्टित्ता तजवि पुषो॥१२॥ संजा अंतरदीवगेसु एगोरुगाण जाईसु । तत्तोऽवि हु मरिऊणं अवश्नो तिरियजोणीए ॥११॥ नारयसरिसहाई अणुहवि वच्चराईबीस । निहणं पावित्तु त उप्पन्नो वासुदेवत्ते ॥ १२ ॥ तत्यवि बहुधारनं घणपावपरिग्गहं करित्तु पुषो । सत्तमपुढविं पत्तो बित्तो घणपावपंकण ॥ १३ ॥ तत्तो समुरिचा अप्पं दप्पंधलोयणो जाऊँ । गयकन्नमणुबजाई माई मंसा मजपि ॥१२॥ सत्तमपुढवी(ऍ)य ग म त पावकम्मिट बहुसो। चविलं तऽवि महिसो संपत्तो तिरियजाईसु ॥ १२५ ॥ जारुषहणाश्ऽहं सहत तत्थ पुण गड निहणं । बालविहवाइ माहणसुयाइ तह पंसुलीए य ॥१६॥ कुडीए संजूरी नूठविव गरहिट सदोसेहिं । पन्चन्नगन्जसामण पामणपमुहेहिं सुरकेहिं ॥ १७॥ बहुवाहिवयणासयकलियंगो मुकुवाहियो। किमिजाखखजामायो नीहरि गन्जमज्काळ ॥१२॥ कहकहमवि बुढिग निंदिरातो य पामरजणेहिं । गरहिर्कतो बहुहा तामिजतो य बाखेहिं । १२ए। १ पातकेनात्मानम् . १५० SAXXX ॥९ ॥ Jain Education in For Private & Personal Use Only w.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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