SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तस्सेव वाणियस या चतम्मि विसयजम्मा पासण मापाणे रसियत्तं सुनवसनमिया ॥ १०॥ य किंचि दविणन या य कुसंगेणं असइ सया संपत्ता ॥ १६॥ साहियमेयं च पुरोहियस्स तेणावि करिवं सुचिरं । निविसया य कया सा पाववसेणं हुच निरासा ॥१४॥ कत्थवि न खा गएं खाएं पाणं न यावि सम्माएं । सीजएहपिवासाहिं विज्छमिया कम्मवसनमिया ॥१०॥ पमिया इन्जिरकम्मी दासत्तं पाविया रसवपिस्स । तत्थ पुष मजपाणे रसियत्तं सुकु संपत्ता ॥१०६॥ मंसोवरि मोहल जाउँ चित्तम्मि विसयतम्मा । पमिया य कुसंगणं असइ सया पिसियखंगाई॥१०॥ तस्सेव वाणियस्स य गेहा मुसिय किंचि दविणरं । विक्क(किणिय अन्नगणे सा मुंज विसयसुरकाई॥१०॥ वाणिकगण नायं तच्चरियं साहियं च जूवश्यो । वज्का तेणाचा धिता क य पावित॥१०॥ मिति नायरखोर्ड सोउवगढ करे विन्नतिं । एसो हु रायधम्मो गब्जवई नेव हतबा ॥ ११०॥ पसवर जाव न बाखं ताप पयत्तेण रस्कियवेसा। श्रह तं निगिगेहं नूवश्वयणेण नेकणं ॥ १११॥ खोएण पसवसमयं जाव नियंतियघरोयरे धरिया । अह दारयं पसूया नूयाहिगलब कंपतणू ॥ ११ ॥ तरकणमेवाणीया नीया रायंगणम्मि गुणहीणा । श्रारकगाण दिहिं वंचित्ता ताव नणु नच ॥ ११३ ॥ मुणियं नूमीवणा जिसं गवेसावियावि नोखा । तो श्राश्रन्ना तत्तणु पाखियबोय ॥ ११४॥ दिन्ना पंचसहस्सा तप्परिपा(वा)लएकए धणस्समुणा । सो पंसुखीइ तए पुरवं संवहिऽवि म॥ ११५॥ यह सावि हु मरिकम् तम्माया पावकम्मले जाया। वत्येव पुरे सूपाहिवत्त तस्स तो रन्ना ॥ ११६॥ १ भूता. 139 STOMACANCARNAKAT Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy