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________________ श्री आवश्यकमल. यगिरीयवृत्तौ नम- हे कारे ४ ॥ ५०९ ॥ Jain Education International जइ राया अच्छा तो कहेमो, आगतो राया, पारद्धा धम्मकहा, राया उस्सरितो, अंतेउरिया उवसग्गंति दंडेण हयातो, सिरिधरदिट्ठतं कहिंति, राया तुट्ठो परमसद्धो जातो ॥ कुसीलपडिसेवणाए ईसालुयभज्जातो चत्तारि, तेण सत्तवइपरिक्खितं घरं कारियं, ततो रायं विन्नविऊण तेण पडहएण घोसावियं, जहा अमुगस्स घरे समक्खं परोक्खं वा न केणई पविसिअवं, साहू अयाणंतो वियाले वसहिणिमित्तं अतिगतो, सो अ परिसिइओ, तत्थ पढमे जामे पढमा आगया, भणइ - पढिच्छह, साहू कच्छं वंधिऊण आसणबंधं काऊण अहोमुहो ठिओ, चीरेण वेढितो, न सकिओ खोमेउं, किसित्ता गया, इयरीओ पुच्छंति - केरिसो ?, सा भणइ - एरिसो अण्णो नत्थि मणूसो, एवं ताओवि कमेण एकेकं जामं किसिऊण गयातो, मिलि यातो सार्हेति, उवसंताओ सद्धीतो जायातो ॥ तिरिच्छा चउबिहा भया १ पदोसा २ आहारहेउं ३ अवञ्चलयणसारक्खणया ४भएण सुणगाई व (ड) सेज्जा, पदोसे चंडकोसितो मक्कडाई वा, आहारहेउं सीहाई, अवञ्चलयणसारक्खणट्टयाए कागिमाई ॥ आत्मना संवेद्यन्ते - क्रियन्ते इति आत्मसंवेदनीयाः, ते चउबिहा- घट्टणया पवडणया थंभणया लेसणया, तत्थ घरणया अच्छिम्मि रओ पविट्ठो, तेण चमढियं दुक्खिउमारद्धं, अहवा सयं चेव अच्छिम्मि गलके वा किंचि सालुगाइ उट्ठियं घट्टइ, पवडणया मंदपयत्तेण चंकमइ, ततो दुक्खाविजइ, थंभणया ताव बइठ्ठो अच्छितो जाव पादो सुन्नो जातो, लेसणया पायं आउंटावेत्ता ताब अच्छितो जाव तत्थयावातेण लइओ, अहवा नहं सिक्खामित्ति अइनामियं किंचि अंगं, | तत्थेव लग्गं, अहवा आयसंवेयणीयां चउविहा-वाइया पेत्तिया सिंभिया संनिवाइया, एए दद्दोवसग्गा, भावतो उवउत्तरस एते चेव, उक्तं च-"दिवा माणुस्सया चेव, तिरिक्खा य वियाहिया । आयसंवेयणीया य, उवसग्गा चढविहा ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only उपसर्गाः ॥ ५०९॥ www.jainelibrary.org
SR No.600045
Book TitleAvashyakasutram Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages312
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size18 MB
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