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आं. सू. ६७
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भणितो सो चिंतेइ - एए मम पुत्तगा नत्तुगा य वंदिज्जंति, अहं कीस न वंदिजामि ?, ततो सो भणइ - अहं किं अप्पन - इतो १, ताणि भणति -कतो पबइयाण छत्तयाणि भवंति ?, ताहे सो चिंतइ एयाणिवि ममं पडिचोयंति तो छड्डेमि, ताहे पुतं भणइ-अलाहि पुत्त ! छत्तएण, ततो ते भणति - अलाहि, जाहे उन्हं होइ ताहे कप्पो उवरिं कीरज इति, पुणो भणति - मोत्तूर्ण करगिल्लं, ताहे पुत्त्रेण भणितो-मत्तएण चैव संनाभूमिं गच्छह, एवं जंनोवइयंपि मोयावेंति, आयरिया भणति को अम्हे न याणइ जह बंभणा इति, एवं तेण ताणि सबाणि मुक्काणि, पच्छा ताणि पुणो भणति - सबे वंदामो मोत्तणं कडिपइइल्लं, ताहे सो भणइ रुट्ठो-सह अज्जयपजएहिं मा वंदह, अण्गे वंदिहिंति ममं, न मुयइ कडिपट्टगं । तत्थ य साहू भत्तं पच्चक्खायतो, ताहे तस्स कडिपट्टयवोसिरणडयाए वर्णेति - एयं मयगं जो वहड़ तस्स महलं फलं भवति, तत्थ पढमं पद्मइया सन्नियल्लया - तुम्भे भणेजाह- अम्हे एयं वहामो, एवं ते उट्ठिया, आयरियसयणवग्गो भणइ - अम्हे वहामो, ततो ते भंडता आयरियसगासं पत्ता, आयरिएहिं भणिया-अम्हं सयणवरगो किं मा निज्जरं पावउ ?, तुम्हे चेव भणह - अम्हे वहामो, ताहे सो थेरो भणइ - किं एत्थ पुत्ता ! बहुया निजरा ?, आयरिया भणंति - आमंति, ततो सो भइ-अहं वहामि, आयरिया भणति - एत्थ उवसग्गा उप्पज्जंति, बेडरुवाणि नग्गति, जइ तरसि अहियासेउं तो वहाहि, अह नाहियासेसि तो अम्हं न सुंदरं भवइ, ( सो भणइ - ) अहियासिस्सं, एवं सो थिरो कओ, जाहे सो उक्खित्तो ताहे तस्स मग्गतो पवइयातो वियातो, ताहे खुड्डगा भणंति-मुय कडिपट्टयं, ताहे सो मड्यं मोत्तुमारद्धो, अन्ने हिं भणितो - मा मोच्खसि, गुरूणं न सुंदर हाहिर, तत्थ से अण्णेण कडिपट्टतो पुरतो काऊण दोरेण बद्धो, ताहे सो
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