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________________ श्रीआव-इयं कालं संगोवितो, एत्ताहे तुमं संगोवेहि, ततो तेण भणियं-मा ते पच्छाताचो भविस्सइ, ताहे सक्खीकाऊण गहितोश्रीवज्रवृत्त श्यक मल छम्मासितो, ताहे तेण चोलपट्टेण पत्तावंधिओ, न रोवइ, जाणइ सन्नी, ताहे तेसु उवस्सयं आगएसु आयरिएहिं भाणं यः वृत्ती भारियति हत्थो पसारितो, दिन्नो, हत्थो भूमि पत्तो, भणंति- अजो! नजइ वरंति, जाव मुक्कं, पेच्छंति देवकुमारोवमं । उपोद्घाते दारगं, भणंति य-सारक्खह दारगं एयं, पवयणस्स आहारोएसोत्ति, तत्थ से वइरो चेव नामं कयं, ताहे संजईण दिन्नो, ताहिं सेज्जायरकुले, सेजायरगाणि जाहे अप्पणगाणं चेडरूवाणं पीहगं वाण्हाणं वा मंडणगंवा करेंति ताहे सवं तस्स करेंति, ॥३८७॥ 16 जाहे उच्चाराई आयरइ ताहे आगारं दंसेइ कुवेइवा, एवं संवडइ, फासुयपडोयारो तेर्सि इट्ठो, साइवि वाहिं विहरंति, ताहे तासा सुनंदा पमग्गिया, तातो निक्खेवगोत्ति न देंति, सा आगया थणं देइ, एवं तिवरिसो जातो । अण्णया साहू विहपरंता आगया, तत्थ राउले ववहारो जातो, सो धणगिरी भणइ-मम एयाइ दिन्नं, तो नगरं सुनंदाए पक्खियं, ताए नहूणि खेल्लगाणि गहियाणि, रन्नो पासे ववहारे च्छेदो, तत्थ पुबहुत्तो राया दाहिणतों संघो सयणपरियणो वामपासे नरहैं वइस्स, तत्थ राया भणइ-मम के अप्पगा? के परे १, जतो चेडो जाइ तस्स भवतु, तेहिं पडिस्सुयं, को पढमं वाह रउ, पुरिसोत्तमो धम्मोत्ति पुरिसो वाहरउ, ताहे नगरजणो आह-एएसिं परिचिओ, माया सदावउ, अविय-माया |दुक्करकारिया, पुणो य पेलवसत्ता, तम्हा एसा चेव वाहरउ, ताहे आसहत्थिरहउसमेहिं मणिकणगरयणचित्तेहिं बालभा- ॥३८७॥ |वलोभावगेहिं भणइ-एहि वयरसामी !, ताहे पलोएंतो अच्छइ, चिंतेइ य-जइ संघ अवमन्नामि तो दीहसंसारिओ भविस्सामि, अविय-एसावि पवइस्सति, एवं तिण्णि वारे सद्दावितो ण एइ, ताहे से पिया भणइ-जइ सि कयववसातो REAKल Jain Education Intens For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600044
Book TitleAvashyakasutram Part_2
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size18 MB
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