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निगदसिद्धा॥ वासुदेवबलदेवानां यथोपन्यासमायुःप्रतिपादनायाहचउरासीह बिसत्तरि सही तीसा य दस य लक्खाई। पन्नाद्विसहस्साई छप्पन्ना बारसेगं च ॥४०५॥ पंचासीई पन्नत्तरी अ पन्नहि पंचवन्ना य । सत्तरस सयसहस्सा पंचमए आउअं होइ ।। ४०६॥ पंचासीइ सहस्सा पन्नट्ठी चेव तह य पन्नरस । वारस सयाइँ आउं बलदेवाणं जहासंखं ॥४०७॥ निगदसिद्धाः॥ साम्प्रतममीषामेव पुराणि प्रतिपाद्यन्ते, तत्र पोषण बारवइतिगं अस्सपुरं तह य होइ चक्कपुरं । बाणारसि रायगिहं अपच्छिमो जाउ महुराए ।। ४०८॥ निगदसिद्धा॥ एतेषां मातृपितृप्रतिपादनायाह
मिगावई उमा चेव पडवी सीआय अम्मयालकिमई मेसमई गई देवई इ॥४०॥ दामहा सुभद्द सुप्पम सुदंसणा विजय वेजयंती अ । तह य जयंती अपराजिआ य तह रोहिणी चेव ॥४१०॥ हवह पयावइ भो रुद्दो सोमो सिवो महसिवो य । अग्गिसीहे अ दसरहे नवमे भणिए अवसुदेवे ।।४११॥
निगदसिद्धाः॥ एतेषामेव पर्यायवक्तव्यतामभिधित्सुराह| परिआओ पवजाऽभावाओ नत्थि वासुदेवाणं । होइ बलाणं सो पुण पढमणुओगाओ नायवो ॥ ४१९॥ निगदसिद्धैव ॥ एतेषामेव गतिप्रतिपादनायाहएगो जसत्तमाए पंच य छडीह पंचमी एगो । एगो अ चउत्थीए कण्हो पुण तचपुडीए ॥ ४१३ ॥
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