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________________ उपोद्धातनियुकिः ॥२२२॥ ASKARNAKACASE तस्स वयणेण पुणरवि नंदिस्सरदीवे समयक्खेत्ते य कयजिणवंदणपूया चुता समाणा अंबुद्दीवे दीवे पुषविदेहे पुक्खलावह- ललितांग. विजए पुंडरिगिणीए नगरीए वइरसेणचक्कवहिस्स गुणवतीए देवीए दुहिया सिरिमई नाम जाया, धाईजणपरिग्गहिया स्वयंप्रभ सुहेण वड्डिया कलातो गहियातो, अन्नया कयाइ पदोसे सवतोभदं पासायमधिरूढा पस्सामि नगरबाहिं देवसंपायं, श्रीमती, ततो मए देवजाई सुमरिया, सुमरिऊण य दुक्खेणाहया, परिचारिगाहिं जलकणगसित्ता पच्चागयचेयणा चिंतेमि-कत्य | निर्वामिमे पियो ललियंगतो देवोत्ति ?, तेण य विणा किं जणेण आभटेणंति मूकत्तणं पवण्णा, परियणो भणइ-इमीसे वाया काभव: जंभगेहिं निरुद्धा, ततो तिगिच्छेहिं होममंतरक्खाविहाणेहिं कतो महंतो पयचो, अहंपि मूकवणं न मुयामि, परिचारियाणं पुण लिहिऊणमाणत्तिं देमि, अन्नया पमयवणगयं ममं पंडिया नाम अम्मधाई विरहे भणइ-अहं ते धाई तो मे| कहेहि सन्भूयं, ततो मया भणियं-अम्मो! अस्थि कारणं जेणाई मूयत्तणं पवण्णा, ततो सा तुट्ठा भणइ-पुत्ति! साहसु मे कारणं, ततो जहा भण्णसि तहा चेद्विस्सामि, ततो मया भणिया-सुणाहि-अस्थि धायईसंडे दीवे पुरविदेहे मंगलावइविजए नंदिग्गामो नाम संनिवेसो, तत्थ अहं इतो तइयभवे दरिदकुले सुलक्खणसुमंगलाईणं छण्हं भगिजीणं कणिवा जाया, न कयं च मे अम्मापिऊहिं नाम, ततो निन्नामियत्ति पसिद्धिं गया, सकम्मपडिबद्धा य जीवामि, अन्नया कयाइ उसवे इन्भगडिंभाणि नाणाविहभक्खहत्थगयाणि सगिहेहितो निग्गयाणि पासेमि, वाणि दहण भए18 माया जाइया-अम्मो । देहि मे मोयगं अन्नं वा भक्खं जेण डिंभेहिं समं रमामिति, तीए रुद्वाए आया निच्छूढा य ॥२२२॥ गिहातो, कतो ते इह भक्खा,वसु अंबरतिलकं पवयं तत्थ फलाणि खायसु मरसु वचि, ततो रोयंती निग्गया दिवो Jain Education Intercool For Private & Personal use only W ww.jainelibrary.org
SR No.600043
Book TitleAvashyakasutram Part_1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages618
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size14 MB
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