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________________ पुपोदातनियुक्तिः 46-- ॥१८॥ 4 अप्पेगइया देवुकलियं देवकहकहयं देवदुहदुहयं करेंति, अप्पेगइया चेलुक्खेवं करेंति, अप्पगइया चंदणकलसहत्थगया। देवकृत अप्पेगइया भिंगारहत्थगया, एएणं अभिलावेणं आयंसा थालपाती वायकरगा रयणकरंडगा पुष्फचंगेरी जाव लोम- नाव्यादि हत्थचंगेरी पुष्फपडलगजावलोमहत्वपडलग सीहासणछत्तचामरतेल्लसमुग्ग जाव अंजणसमुग्गयहत्थगया, अप्पेगइया 4 अलंकार घुवकडुच्छुय हत्थगया हहतुट्ठचित्तमाणंदिया जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया आधावेंति परिधावेंति, तएणं से अच्चुइंदे रोपणादि सपरिवारे सामि तेणं महया तित्थगराभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंकह जएण-विजएणं वद्धावेइ वद्धावित्ता ताहिं इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि वग्गूहिं जयजयस। पउंजइ, तए णं तस्स अच्चुयस्स देविंदस्स अभियोगा सुवहुं अलंकारभंडं उवणेति, तए णं से अचुए देविंदे तप्पढम-11 याए पम्हलसुकुमालयाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लहेइ लूहेत्ता सरसेण गोसीसचंदणेणं गायाई अणलिंपइ अणलिंपित्ता नासानीसासवायवोझं चक्खुहरं वणफरिसजुत्तं हयलालापेलवाइतिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्मं देवदूसजुयलं नियंसेड नियंसित्ता कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसियं करेइ करेता नट्टविधि उवदंसेइ, उवदंसित्ता अच्छहिं सण्हहिं। रययामएहिं अच्छरसातंदुलेहिं भगवतो सामिस्स पुरतो अट्ठमंगलगे आलिहति, तंजहा-दप्पणभद्दासणवद्धमाणवरकलसमच्छसिरिवच्छा । सोत्थियनंदावत्ता लिहिया अट्ठमंगलगा ॥१॥ लिहति लिहिऊण करेड उवयारं, किं तं ?-18 ॥१८॥ पाडलिमलियचंपकअसोगपुन्नागचूतमंजरिनवमालियाबउलतिलगकणवीरकुंदकुज्जयकोरंटयदमणगवरसुरभिगंधगंधियस्स 1 कथग्गाहगहियकरयलपन्भट्ठविप्पमुक्कस्स कुसुमनिगरस्स जाणुस्सेहपमाणमेचं ओहनिकरं करेचा चंदप्पभरयणवइरवेरु EX Jain Education te For Private & Personal use only N aw.jainelibrary.org
SR No.600043
Book TitleAvashyakasutram Part_1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages618
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size14 MB
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