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अर्थ:-हे जीव ! तने एवो विचार केम नथी आवतो के, हुं, (निसाविरामे के०) रात्रि विराम पामे सते एटले पाछली चार वैराग्यघळो रात्री रहे सते जागीने (परिभावयामि के०) आवो विचार करुं के (जं के०) जे हुं (धम्मरहिओ के०) धर्म रहित थयो सतो
भाषांतर शतकम्
सहित I (दिअहा के०) दिवसोने (गमामि के०) फोकट केम गमावू छु !!! अने वली (गेहे के०) शरीररूप घर (पलित्ते के०) बलवामांडे | ॥८ ॥ | सते (अहं के०) हु (किं के०) श्या माटे (सुयामी के०) मृइ रहुं छु ! अने (भऽजगत के०) दाझता एटले शरीररूप घरनी साथे |
| बली मरता एवा (अप्पाणं के०) आत्मानी (उबखयामि के०) उपेक्षा केम करुं छु !!! अर्थात् देहनी साथे रहेला बलता आत्मानी Kा रक्षा केम नथी करतो !! इत्यादि आत्मभावना तुं केम भावतो नथी ? ॥ ३९॥
भावार्य.-शास्त्रने विषे सर्व हत्याओ करतां आत्महत्या महोटी गणी छे. एटले जाणी जोइने आत्मानु बगाडवू, अर्थात् छती/09 सामग्रीए पण आत्मसाधन न करवू, अने रात्रि दिवस देहादिक परभावमांज रच्यु पच्यु रहेg; ते शु आत्मानी घात करी न कहे| वाय ? अर्थात् आत्महत्याज कहेवाय !! माटे वयो रात्रि दिवसतो संसारना वेगमां चढी जतां कांइ पण विचार न आब्यो, पण |
पाछली च्यार घळी रात्रे उठीने, जरा निर्मल चित्तवालो थइने, बीना बधा विचार रहेवा देइने, हे आत्मन् ! तुं तहारा आत्मानो II विचार कर, इहां पाछली च्यार घडी रात्रे उठीने विचार करवानें ग्रंथकार लखे छे, तेनो अभिप्राय ए छे के, जेम स्त्रीयो घंटीये Is दलमा मांडे छे, पछी दलतां दलता एटले फेरवतां फेरवतां ते घंटीने एवा वेगमां लावे छे के, ते वखते जो घंटी फेरववी मूकी
दे, तोपण वेगना जोरथी ते फेरच्या बिना पांच सात आंटा फरी जाय छे. तेम आ जीव पण वधो दिवस संसारना कामनो एवो K वेग लगाडे छे के, ते रात्रे लांबो थइने मूए छे, तो पण ते कामनां स्वप्न आवे जाय छे. ते स्वप्न, दिवसे करेला कामना इच
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