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________________ वैराग्य छे. तथा जेम मार्गने विषे, कोइ किये गामथी, कोइ किये गामयी आवीने भेगा थाय छे, पछी त्यां थोडीवार विश्राम करीने, एक शतकम् | टले भातु खाइने पाछा सर्वे पोतपोताना योग्य स्थानक प्रत्ये जता रहे छे. पण तेओ एक ठेकाणे वेशी रहेता नथी; तेम आ भाषातर सहित IN संसारी जीव पण, कोइ कइ गतिमांधी, कोइ कयि गतिमांथी, आवीने एकठा थाय छे. त्यां पोतपोताना कर्मानुसारे सुख दुःख | ॥ ७९ ॥ भोगवीने, पछी पाछा पोतपोताने योग्य गतिमा जता रहे छे. पण कोइ कोइना झाल्या रहेता नधी. वली जेम चारे दिशाएथी | ॥ ७९ ।। 5 आवेला मनुष्योनां नाम जूदां जदा छे, तेमां चारे गतिमाथी आवेला अने एक घरमा रहेला एवा जीवोनां नाम पण जूदां जूदां - कल्प्यां छे. तेमां कोइ माता कहेवाय छे, कोइ पिता, कोइ भार्या, कोइ भाइ, कोइ पुत्र, कोइ पुत्री, इत्यादि कल्पनाए करीने नाम | PA ठराव्यां छे. तेमां तुं महोटो मोह धारण करे छे, अने तेने सुखे सुखी, अने तेने दुःखे दुःखी थाय छे. परंतु हे मूढ जीव ! JI तुं एटलु विचारतो नथीं के, आ जूठा संबंधने साचो संबंध मानीने शुं करवा हेरान थउ छ ? माटे हे जीव ! एवा जूठा संबंधने | जूठो मानीने, तेना उपरथी मोह उतारीने, आत्म साधन करवाने विषे उद्यमवंत था! ॥३९॥ ॥ उपजातिवृत्तम् ।। निशाबिरामे जागरितः सन् परिभावयामि गृहे मदीप्ते किं अहं स्वपिमि निसाविरामे परिभावयामि । गेहँ पलिते किमऽहं सुयामि दात आत्मानं उपेक्षे यत् धर्मरहिताः दिवसान् ममयामि तत् डज्झैतम ऽपाणमु वर्खयामि । जै धम्मरहिओ दिअहा गामामि ॥३९॥ ww.tainelibrary.org. Jain Education Inte l 2010 05 For Private & Personal Use Only
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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