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________________ भाषांतर सहित ।।७८॥ जनोनी साथे, श्रीमंयूकुमारे श्रीसुधर्मस्वामी पासे दिक्षा लीधी, ए रीते लक्ष्मी अने विषयनां सुख त्याग करवा माटे, जंयूकुमारनु । वैराग्यशतकम् SED दृष्टांत कत्यु, आ मधुबिंदुभाना दृष्टांतनो सिद्धांत एटले उपनय धणो प्रसिद्ध छे, तोपण किंचित् टीका करीने देखाड्यो छे.. यथा संध्याया शकुनानो संगमः यथा पथि च पथिकानां ॥ ७८॥ जैह संझाए सउणा । ण संगमो जंह पंहे अ पहिआणं ॥ स्वजनानां संयोगः तथैव क्षणभंगुरः जीव सययाण संजोगो" । तहेवं खणभंगुरो जीवें ___ अर्थः-हे आत्मन् ! [जह के०] जेम [संझए के०] संध्याकालने विषे (सउणाण के०) पक्षियोनो ( संगमो के. ) संगम थाय छे, I Pा के०] वली [जह के०] जेम [पहे के०] मार्गने विषे [पहिआण के०] मार्गे जनार लोकोनो समागम थायछे, एटले मार्गमा जनार लोकोनो समागम तथा पक्षियोनो समागम जेम थोडा कालनो छे, [तहेब के०] तेमज [जीव के०] हे जीव ! (सयणाणं के०) ael स्वजननो (संजोगो के०) संयोग जे ते (खणभंगुरो के०) क्षणभंगुर छे. एटले क्षणमां नाश पामवाना स्वभाववालो छे. ॥३९॥ ...भावार्थः-जेम संध्यासमये अनेक प्रकारनां पक्षियो च्यारे दिशा तरफथी आवीने एकठयं मले छे, अने प्रातःकाले तेज पक्षियों पोत पोतानाकर्मने अनुसरीने चारे दिशा तरफ उडी जाय छे. तेम आ संसारने विषे अनेक प्रकारना जीवो चारे गतिमी आवीने, आ मनुष्यभवमा एकठा थया छे. अने तेज जीवा, पातानु आयुष्य पूर्ण करीने, पाछा कर्मानुसारे चारे गतिमा जता रहे RSSOORDINDOR Jain Education Int 2 010_05 For Private & Personal use only ANTyww.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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