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________________ बैराग्यशतकम् भाषांतर सहित वाय ? एटले घर बलवा मांड्या पछी कूवो खोदी पाणी कहाडी घर होलवायज नहीं. तेम वृद्धावस्थामा बधुं धर्मसाधन करीशु, एम धार, ते सिद्ध थायज नहीं. केम के, वृद्धावस्थाना स्वाभाविक दुःखथी, धर्मसाधन बनी शकवू घणुंज कठण छ, माटे धर्मसाधन करवामां प्रमाद न करवो ।। वली ए वातने मूल ग्रंथकार पण जणावे छे. यथा गेहे प्रदीप्ते कूप खनयितुं न शक्नोति कोऽपि जहे गेहेंमि पलिते । कूवं खणिउं नैं सर्कए कोई ॥ तथा संपाप्ते मरणे धर्मः कथं क्रियते हे जीव तह संपत्ते मरणे। धम्मो केह कीरऐं जीवें ॥ ३५॥ अर्थ:-हे जीव ! (जह के.) जेम गेहंमि के०] घर ( पलित्ते के ) बलवा मांडये सते (कोइ के०) कोइपण. | एटले समर्थ होय ते पण (कूवं के० ) कूवाने (खणिओ के०) खोदवाने. अर्थात् कवो खोदी पाणी काढीने, बलता | घरने होलववाने (न सक्कए के० ) न समर्थ थाय, (तह के ) तेम ( जीव के०) हे जीव ! (मरणे के० ) मरण | (संपत्ते के०) प्राप्त थए सते एटले मरण नजीक आव्ये सते (धम्मो के०) धर्म जे ते (कह के०) किये प्रकारे (कीरए | के०) करी शकाय ? ॥ ३५॥ berg Jain Education Inter For Private & Personal Use Only
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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