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वैराग्य
शतकम्
॥ ५४ ॥
क्यांथी आव्युं छे ? अने ( कह चलिये के० ) क्या गयुं ? एटले अहिंथी मरीने क्यां गयुं ? अने (तुमपि के० ) तुं पण ( कहआगओ के०) क्यांथी आव्यो ? अने ( कहं गमिहि के०) क्यां जइश ? एम (अन्नुन्नपि के० ) परस्पर एटले | एक बीजाने पण ( नयाणह के० ) नथी जाणतो. माटे (तज्झ के० ) तहारुं कुटुंब ( कओ के० ) क्यांथी ? अर्थात् | एक बीजाने जाण्या वगर आ कुटुंब महारुं छे, एम मानी बेठो छु; ते मिथ्या छे. ॥ ३१ ॥
भावार्थ- हे जीव ! जेना उपर तने घणो मोह छे, ने महारां करे छे, ते तहारां माता पिता स्त्रीयादिक केइ | गतिमांथी आव्यां छे ? ने केइ गतिमां जशे ? अने तु पण केइ गतिमांथी आव्यो छे ? ने केइ गतिमां जइश ? ते | संबंधी तने कांइ पण खबर नथी. एटले जेंम परबने विषे कोइ क्यांथी आव्युं ने कोड़ क्यांथी आयु, ए रीते ते | ते सव आवीनें एकठां मछे छे. पछी तेओ पाणी पीने सउ सउने मार्गे वेराइ जाय छे. तेम आ भवरूप परवने विषे कुटुंबरूप सर्व लोक पण, कोइ नारकीमांथी, कोइ तिर्यचमांथी, कोइ मनुष्यमांथी अने कोइ देवलोकमांथी, एम सउ | सउनी गतिमांथी आवीने भेगां धयां छे. तेओ पोतपोताना कर्मने अनुसारे सुख दुःख दुःख भोगवीने, पोतपोतानां | करेलां कृत्यने अनुसारे चाल्यां जाय छे. परंतु तेमने राखवाने माटे तुं अनेक प्रकारना उपाय करीश, तोय पण ते रही शकवानां नथी. ते कारण माटे तेमने तुं एम मानी बेठो छु के, आ महारुं कुटुंब छे, पण ते वस्तुगते तहारुं कुटुंब छेज नही. परंतु तहारुं साधुं कुटुंब तो ज्ञान, दर्शन, चारित्रादिक आत्मगुण हे ॥ ३१ ॥
आ अधिकारने विशेष जाणवानी मरजी होय तो, श्रीआचारांगजी सूत्रना प्रथम श्रुतस्कंधना प्रथम अध्य
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भाषांतर सहित
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