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________________ वैराग्यशतकम् | ते (धम्मो के) धर्म जे ते (मुक्खमग्गपयाणं के०) मोक्ष मार्गने विषे प्रवर्तेला पुरुषोने (परमसंदणो के०) उत्कृष्टा २६ | भाषांतर रथ समान छे. ॥ १०१॥ साहेत Ni भावार्थ-जेम आपद कालने विषे भाइ सहायता करे छे, तेम संसाररूप आपकालनां, आ जिनधर्न पण ॥१६॥ rai सहायता करे छे; माटे भाइ समान छे. तथा सारो जेम हितकारी अर्थने मेलवी आपवाथी सुख करे छे, तेम आ ॥१६८॥ धर्मरूप मित्र पण मनोवांछित सुख मेलवी आपवाथी सुमित्र समान छे. तथा गुरु जेम असत् मार्गथी पाछो वाले छ तेम आ जिनधर्म पण, नरक तिर्थचादिक दुर्गतिमां जवाथी पछो वाले छे. माटे उत्कृष्टा गुरुममान छे. तथा रथे करीने जेम मार्गमां सुखे सुखे जवाय छे, तेम धर्मरूप रथे करीने मोक्ष मागमा सुखे सुखे जइ शकाय छे. माटे धर्मने । ॐ परम रथ समान कह्यो छे. एवं जाणीने आवा जैनधर्मने विषे उद्यम करवो. ॥ १०१ ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ।। चतसृणांगनीनांयान्यनंतानिदुःखानितान्येवानलस्तेनपदीप्तेभवकानने महाभीमे च उगइणंतदुहानल । पलितभवकाणण महाभीमे ।। सेवस्व रेजीव त्वं जिनवचनं अमृतकुंडसमं सेवसुरजीव तुम । जिणवयणं आभयकुडसम ॥ १०२॥ अर्थ-(महाभीमे के०) महाभयंकर एवं (चउगइणंतदुहानल के०) च्यार गतिमा रहेलां एवां अनंतां दुःखरूप انشالله تداع في الانتقال به این باند باع والو Jain Education Intern 12010_05 For Private & Personal use only w ww.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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