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________________ बैराग्यते उपर दृष्टांत कहे छे के, जेम वैडूर्यादि रखनो समूह जेमा रह्यो छे, एवा रत्नाकरने पामीने एटले रत्ननी खाण hd भाषांतर शतकम् पामीने कांतिरहित एवो, अने वली अल्प मूल्यवालो एवो काचनो ककडो लेवो शुं तहारे घटे छे ? अर्थात् पूर्व | Rel माहित t| कह्यो एवा रत्नाकरनो त्याग करीने, तेने बदले काचो ककडो लेवो ते, घटेज नहीं, तेम अतिशे अल्प अने तुच्छ |J ॥१२९॥ II एवा विषयसुखने अर्थे रत्नाकर समान जिनधर्मनो त्याग करवो, ते पंडित पुरुषने घटे नहीं. वली जेणे धर्मकृत्य नथी | || ॥१२९॥ कयु, तेने परभवमा संजमरूप जीवित मलतुंज नथी. वली गएला एवा, जे धर्मसाधन करवाने योग्य एवा, रात्री R दिवस जे ते, तथा यौवनादिक काल इत्यादिक पाछां आवतां नथी. केमके, इंद्रादिक- पण त्रुटेलं आयुष्य पार्छ संघातुं नथी. माटे एq जाणीने रात्री दिवस धर्मनुं आराधन करवू. ॥ ७३ ॥ हवे सर्व संप्सारी जीवने आयुष्यनु अनित्यपणुं देखाडे छे. बालाः वृद्धाः च पश्यन गर्भस्था अपि त्यति मानवाः डहेरा बुढ़ा ये पासंह । ग_त्यावि चयं ति माणवा ॥ उयेनः यथा वर्तकंतितीरि हंति एवं आयुक्षये त्रुट्यतिनीवितं सेणे जह वट्टयं हेरे। एवमाऽऽवयंमि तुर्दैई ।। ७४ ।। अर्थ-हे आत्मन् ? (डहरा के०) बाल एवा (य के०) वली (बुट्टा के०) वृद्ध एवा, वली (गज्झत्थावि के०) गर्भने विषे रहेला एवाय पण (माणवा के०) मनुष्य जे ते (चयंति के०) नाश पामे छे. (पासह के०) तेने तुजो. वली (जह __Jain Education internN E10_05 For Private & Personal use only Jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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