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वैराग्यशतकम्
भाषांतर
सहित
॥१३०॥
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| के०) जेम (सेणे के०) शिंचागो पक्षी जे ते (वयं के०) तेतर पक्षीने (हरे के०) हरण करे छे. अर्थात् शीघ्रपणे मारे
छे. (एवं के०) ए प्रकारे (आउक्खयंमि के०) आउखानो क्षय थये सते (तुट्टई के०) त्रुटे छे. एटले क्षणे क्षणे आयुष्य नाश पामे छे, अथवा मृत्यु जे ते जीवितने हरे छे. ॥ ७४ ॥
भावार्थ-हे जीव ! तुं विचारीने जो के, केटलाएक मनुष्य गर्भमा रह्या थकाज मरण पामे छे, अने केटलाएक महाकष्टे करीने जन्म थया पछी बालपणामांज मरण मामे छे, अने केटलाएक जवान अवस्थामांज पोतानी स्त्रीआदिक वहालां पदार्थोने अणइच्छाए मूकीने मरण पामे छे, अने केटलाएक तो वृद्धावस्थानां दुःख भोगवतां भोगवतां पराणे पराणे पग घसीने मरण पामे के. वली आ जग्याए मानव शब्द ग्रहण कर्यो छे, तेनं ए कारण के के उपदे करवा योग्य होय, तेनेज मनुष्य कहीए. परंतु जे उपदेश देवा योग्य न होय, तेने तो मनुज्यनी पंक्तिमा न गणवा एम ग्रंथकारनो, अभिप्राय छे. वली मनुष्यनुं आयुष्य अनेक प्रकारनां कारणो मलवाथी घणुंज चंचल छे, एम जणा
घवाने अर्थ सर्वे अवस्थामां मरण देखाड्युं छे. वली श्रीसयगडांगसूत्रना प्रथम श्रुतस्कंधना बीजा वैतालीय अध्य| यननी बीजी गाथानी दीपिकामां तथा टीकामां कह्यु छे के:
त्रिपल्योपमायुष्कस्यापि पर्यापत्येनन्तरमन्तंमुहूर्त्तनैव कस्यचिन्मृत्युरुपतिष्ठतीति. अर्थ-त्रण पल्योपमना आयुष्यवालाने पण, पर्याप्ति पाम्या पछी अंतर्मुहूर्ते करीने कोइक पुरुषने मृत्यु जे ते प्राप्तथाय छे
वली श्री ठाणांगजी मूत्रना मातमा ठाणामां को छे के,
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2010_05
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