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________________ संग्रहः साधुसाध्वी आवे । ये २५ औधिक उपकरण पहलेके जमानेमें साध्वियां रखतीथीं, लेकिन “साहूणऽग्गोयरओ, वुच्छिन्नो आवश्य दूसमाणुभावाओ । अजाणं पणवीस, सावयधम्मो य वोच्छिन्नो ॥१॥" तीर्थोद्गार पयन्ने की इस गाथाके |कीय विचार के अनुसार वह प्रवृत्ति आजकल विच्छेद होगइहै । औपग्रहिक उपकरण साधुके जैसेही साध्विओंकेभी होते हैं। ८ स्थंडिल-पडिलेहण-विचारसाधु तथा रात्रिपौषधिक श्रावक संध्या समय पडिक्कमणेके पहले "आगाढे आसन्ने” इत्यादि पाठ बोलते है हुए और गोल चक्करकी तरह फिरातेहुए ओघेसे या चरवलेसे २४ मांडले करके २४ स्थंडिल पडिलेहतेहैं उनमें , 2. ठल्ले मातरे जानेकी भूमि धारी जाती है, अत्यंत अशक्तिवालेके वास्ते संथारेके दोनों तरफ कमसे कम १-१ हाथ है। जमीन छोडकर नन्दीक, मध्यम और दूर तीन तीन मिलाकर छ मांडले करने, थोडी शक्तिवालेके वास्ते उपाश्रयके . दरवाजे की माहिली बाजु दोनों तरफ ३-३ मिलाकर छ मांडले करने, कुछ अधिक शक्तिवालेके वास्ते उपाश्रयके । दरवाजेसे बाहर दोनों तरफ ३-३ मिलाकर छ मांडले करने, और जिसकी शक्ति ठीकसर होवे उसके वास्ते सौ हाथ दूर जो जमीन देख रखी हो उसके सामने इसी तरह छ मांडले करने, इस तरह २४ मांडले होतेहैं। HEREXREALEAXXX ॥८६ Jain Education Intern Hell2010_05 For Private & Personal use only Ollww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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