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साधुसाध्वी
॥८५॥
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पसवाडे बांधी जातीहै । २३ वैकक्षिका-यहभी डेढ हाथ समचोरस होतीहै, परंतु यह डावी तरफके पेट तथा / आवश्यपीठको ढांककर जीमणे खंधे उपर तथा जीमणे पसवाडे नाकी बोरसे बांधी जातीहै। २४ संघाटी (साडी-चद्दर) काय विचार
संग्रहः ओढनके लिये चार होतीहैं, उनमें लंबाईतो सबकी साढेतीन तीन हाथ अथवा चार चार हाथ होतीहै, और पंने का (चौडाइ)में एक दो हाथकी, दो तीन तीन हाथकी तथा एक चार हाथकी होतीहै, उनमें से दो हाथके पंने वाली तो उपासरेंमेभी हरवक्त ओढे रहना,क्योंकि उपासरेमें भी साध्वी खुल्ले सरीरसे कभी नहीं बैठ सकती, तीन हाथके पंने । वाली एकतो गौचरी जानेके समय और दूसरी ठल्ले जाते समय ओढनी चाहिये, जो चार हाथके पंनेवाली हो | वह मंदिर,व्यारव्यान, पूजा आदिमें जाते समय ओढनी चाहिये। २५ स्कंधकरणी-यह चार चार हाथ लंबी चौडी समचोरस होतीहै और चोवडी करके खंधे उपर रखी जातीहै, जिससे ओढेहुए चद्दर वगेरह कपडे पवनसे इधर ||| उधर न होने पावें, और यदि कोई साध्वी अधिक रूपवान होवे तो लोकोंमें उसकी कुछ कुरूपता दिखानेके । वास्ते कंचुआ बांधे बाद इसी स्कंधकरणीको गोलमटोल करके पीठमें खंधोंके नीचली तरफ दूसरे कपडे ॥५॥ चीरेसे बांधकर उपरसे उपकक्षिका तथा वैकक्षिका बांध दी जातीहै, जिससे कूबडीके समान आकार देखने में ।
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-पूर
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