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साधुसाध्वी आधि साथलतक पहुंच सके उतना तो चौडा और चारों तरफसे आखी कमर ढंकजाय जितना लंबा कपडा आवश्य॥८४॥ होताहै, उसमें जहां जहां चाहिये वहां वहां कस लगाके दोनों साथलोंमें तथा साथलोंके बीचमें उसतरहसे कीय विचार बांधना कि जिससे अवग्रहानंतक तथा पट्टक दोनों दबजाय और पहरे हुए जांगियेकी तरह देखनेमें आवे |
संग्रहः १८ चलनिका-यहभी अ|रुकके जैसीही जांगिये की तरह होतीहै, और उसी मुजब साथल आदिमें वांधी । जातीहै, केवल चौडाइमें गोडोंतक पहुंचे जितनी होतीहै । १९ अंतर्निवसनी ( मोटे साल के भीतर पहरनेका छोटा साडला )-कमरसे लगाके आधि जंघा ( पिंडि ) तक पहूंचे उतनी लंबी होतीहै । २० बाह्यनिवसनी ( मोटा साडला )- कमरसे लगाके पगों तक पहुंचजाय उतनी लंबी होतीहै, और वह चारों तरफसे ।
कंदोरेकी तरह डोरीसे बंधी हुई होतीहै । २१ कंचुक (कंचुआ ) हृदय ढांकनेके वास्ते अढाई हाथ लंबा Kऔर एक हाथ चौडा अथवा अपने अपने शररिके अनुसार लंबा चौडा होताहै, और वह स्तनोंके उपरसे |
डावे जीमणे दोनों तरफ कसोंसे बांधा जाताहै। २२ उपकक्षिका-डेढ डेढ हाथ लंबा चोडा समचोरस होता है है, उसके दोनों तरफ नाकी और वोर लगाके जीमणी तरफके पेट तथा पीठ को ढांककर डावे खंधे उपर तथा डावे
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2010_05
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