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साधुसाध्वी आहार लेनेके पीछे देने वालेकी प्रशंसा करे वह 'पश्चास्संस्तव ' दोष कहाता है, अथवा देने वालेकी । आवश्य
और अपनी अवस्था मुजब उसके साथ अपना संबंध घड़ लेवे, जैसे कि-देने वाले स्त्री या पुरुष की अवस्था ।कीय विचार अपनेसे अधिक होवे तो तुम्हारे जैसे मेरे माता या पिता थे, इसी तरह यदि समान अवस्था हो तो बहिन ||
संग्रहः या भाई का और यदि छोटी अवस्था हो तो पुत्री या पुत्र का संबंध कह बतावे वह 'पूर्वसंस्तव' दोष, और है इसी मुजब अपने से बड़े (मोटे) के साथ जो सासु या ससुरे आदिका संबंध कहे वह 'पश्चात्संस्तव
दोष कहाता है ११, गृहस्थ को विद्या (१) अथवा मंत्रसे (२) मंत्रित करदेवे बाद उसके पाससे गौचरी | IS लेवे अथवा विद्या तथा मंत्रके चमत्कार बताकर जो गौचरी लेवे वह अनुक्रमसे 'विद्यापिंड' दोष १२,
और ' मंत्रपिंड ' दोष कहाताहै १३, अदृश्य होना आदि जिससे होसके वैसा चूर्ण (अंजन-सुरमा): आदि अपने नेत्रोंमें आंज कर लोगोंको खुश करके, अथवा ऐसा चूर्ण बनानेकी रीति दूसरोंको बता ||
(१)--जिसकी अधिष्ठायिका देवी हो और जाप होम आदि क्रिया करनेसे सिद्ध होवे वह विद्या कहातीहै । (२)-जिसके अधिष्ठायक पुरुष रूपवाले देवता हो और जाप होम आदि क्रिया किये विना पाठ मात्रसे जो सिख होवे बह मंत्र कहाता है।
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