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साधुसाध्वी ॥६६॥
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दवाई या वैद्यक बताकर जो गौचरी लेवे वह 'चिकित्सा पिंड' दोष ६, आहार न मिलनेसे क्रोधमें आकर / आवश्यप्रयुक्त किये हुए मारण-उच्चाटन आदि विद्या चमत्कारको देखाकर अथवा साप देना आदिसे डरे हुए गृहस्थसे ||कीय विचार जो आहार लेवे वह 'क्रोधपिंड' दोष ७, दूसरे साधुओंके चढानेसे अथवा अपमान करनेसे या अपनी लब्धिकी है
संग्रहा प्रशंसा सुनकर अभिमानमें आया हुआ 'तुम देखो तो सही में अमुकके घरसे अमुक आहार अभी | लाकर तुमको देता हूं' इस तरह प्रतिज्ञा पूर्वक बोलता हुआ गृहस्थके घर जाकर अनेक तरहके चाटु वचनों है, से उस गृहस्थको अभिमानमें चढाकर, अथवा धमकाकर फैल फितूर करके, स्त्री आदि शेष परिवारवालों I की इच्छा विना घरके मालिकसे जो गौचरी लेवे वह — मानपिंड ' दोष ८, माया (कपट) से नवे नवे | वेष करके और नवी नवी भाषा बोलनेसे गृहस्थको खुश करके, अथवा विद्याके जोरसे जुदे जुदे रूप बना कर जो आहार लेवे वह 'मायापिंड ' दोष ९, अधिक लोभसे बहुत घरोंमें फिर फिरकर अच्छा स्वादिष्ट । आहार लावे अथवा गौचरी फिरते हुए किसीके घरपर अच्छा आहार मिलने पर बहुत ज्यादा लेलेवे . वह ' लोभ पिंड ' दोष १०, आहार लेनेके पहले देने वालेकी प्रशंसा करे वह 'पूर्वसंस्तव ' दोष और 3
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