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साधुसावी , कर जो गौचरी लेवे वह — चूर्ण पिंड ' दोष १४, दो चार अथवा दश वीस चीजें भेली मिला कर सौभाग्य आवश्य॥६८॥ दौर्भाग्य आदि करने वाला पग आदिमें लगानेका लेप आदि बनाना उसको योग कहते हैं, ऐसी योगवाली कीय विचार चीजों का लेप पग आदिके करके जमीन की तरह पानी उपर चलना आदि चमत्कार बताकर अथवा 'अमुक है।
संग्रहः अमुक चीजें भेली करके पानी आदिके साथ खाने-पीने से अमुक नफा या नुकसान होता हैं ' इत्यादि बताके । गोचरी लेवे वह · योग पिंड' दोष १५, विद्या-मंत्र तथा औषधी आदिके बलसे गर्भधारण-गर्भपात अथवा गर्भस्तंभन करके नपुंसक को पुरुषादिक और पुरुष आदिक को नपुंसक आदि बनाके जो गौचरी लेवे वह - मूल कर्म पिंड ' दोष १६, ये १६ दोष उत्पादना के और पहले कहे हुए उद्गम के १६ दोष मिला कर | ३२ दोष गवेषण एषणा के नाम से कहाते हैं, 'गौचरीमें ही ये दोष टालने के हैं' ऐसा नहीं है, किन्तु 8 कपड़े पात्रे आदिमें भी टालने चाहिये।
अब साधु और गृहस्थ दोनोंसे लगने वाले ग्रहण एषणाके १० दोष बताते हैं:“संकिअमरुिखय निख्खित्त,-पिहिय साहरिय दायगुमीसे । अपरिणय लित्त छड्डिय एसण दोसा दस हवंति ६"
RECENSE
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2010_05
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