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________________ विधिसंग्रहः साधुसाध्वी मिश्रं, तीसरा खमा० देकर कहे-वर्तमान गुरून् , चौथा खमा० देकर कहे-सर्व साधून् । बाद हाथ जोड कर मुख ॥३॥ आगे मुहपत्ति रख कर शिर नमा कर "सब्बस्स वि राइय०” (१) कहे, बाद डावा गोडा ऊँचा करके नमुत्थुणं कहे, बाद चारित्राचारकी शुद्धिके लिये करेमि भंते ! इच्छामि ठामि काउस्सग्गं० तस्स उत्तरि० अन्नत्य उस्ससिएणं. कह कर एक लोगस्सका काउसग्ग करे, पार कर दर्शनाचारकी शुद्धिके वास्ते प्रगट लोगस्स० सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं० तथा अन्नत्थ उस्ससिएणं० कह कर फिर एक लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पार कर ज्ञानाचारकी शुद्धिके वास्ते पुक्खवरदीवऽड्ढे० सुअस्स भगवओ करोमि काउस्सग्गं० वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ कह कर काउ० करे, उसमें “सयणासणऽन्नपाणे, चेइ जइ सिज्ज काय उच्चारे. समिइ भावणा गुत्ति, वितहायऽऽरणे य अइयारो॥१॥” इस गाथाको अर्थ सहित १वार अथवा मूल ३वार विचारे या ८ नवकार गिणे पार कर सिद्धाणं KIबुद्धाणं० कह कर संडासे (२) पूंजते हुए बैठ कर तीसरे आवश्यककी मुहपत्ति पडिलेहे और दोवार वांदणे देवे (३)। घडी रात बाकी रहे तब राइय पडिक्कमणेकी वेला होती है । (१) 'इच्छा० संदि० भग० राहयपडिक्कमणे ठाउं ? इच्छं' ऐसा कह कर डावे हाथसे मुखके आगे मुहपत्ति रखे और जीमणा हाथ ओधे ऊपर स्थापन कर "सवस्स वि" कहनेकी आजकल प्रवृत्ति है। (२) संडासे 4 पूंजनेका वृत्तांत जानने के लिये इसी पुस्तकके पीछे नंबर १० संडाशक प्रमार्जन विचार' देखो । (३) वांदणे देनेकी रीति जाननेके लिये XRAYA-ॐॐॐॐॐAXXX ॥ ॥ Jain Education Internal 010_05 For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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