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साधुसाध्वी ओहडावणियं - राइय पायच्छित विसोहणऽत्थं काउस्सग्ग करूं ?, इच्छं कुसुमिण दुस्सुमिण ओहडावणियं राइय पायच्छित्त विसोहणऽत्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ उस्ससिएणं० कह कर " सागरवर गंभीरा " तक चार | लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पार कर प्रगट लोगस्स कहे, खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं' कह कर " जयउ सामिय जयउ सामिय" इत्यादि चैत्यवंदन कहे, और जं किंचि० नमु| त्थुणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केवि साहू० नमोऽर्हत्० उवसग्गहरं० तथा जय वीयराय ० कहे. बाद खमा० 'इच्छा० | संदि० भग० ! सज्झाय संदिसाउं ?' इच्छं इच्छामि खमासमणो० 'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय करूं ?, इच्छं ' | कह कर एक नवकार० धम्मो मंगलकी पांच गाथा और ऊपर एक नवकार कहे, बाद "अणुजाणह (१) इच्छकार सुहराइ ०" कहकर (२) चार खमा ० देवे, पहला खमा ० देकर कहे - आचार्य मिश्रं, दूसरा खमा०दे ० देकर कहे - उपाध्याय
(१) श्रीजिनपतिसूरिजी ने अपनी समाचारीमें लिखा है कि पडिक्कमणेमें तो केवल गुरुही " इच्छकार सुहराइ" कहे, अन्य साधु गुरुको वंदना करते हुए कहे। ( २ ) इतने तक कर लेने बाद यदि पडिकमणेकी बेला न हुई होवे तो अरिहंतादिका स्मरण करता हुआ धर्म ध्यानमें वर्ते, पढे हुए पाठको मनमें संभाले, जब वेला होजावे तब आगे लिखे मुजब चार खमा० देकर पडिक्कमणा ठावे । दो
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विधिसंग्रह:
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