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________________ साधुसाध्वी ति ॥४॥ बाद खडे होकर कहे-'इच्छा० संदि० भग०! राइयं आलोउं ? ' गुरु कहे-'आलोएह' बाद 'इच्छं' आलोएमि जो मे राइओ०तथा संथारा उद्दणकी० कह कर "सव्वस्स वि राइय दुचिंतिय दुब्भासिय दुच्चिट्ठिय इच्छाकारण संदिसह भग०!" इतने तक कहकर थोडासा ठहर जाय, जब कि 'पडिक्कमेह' ऐसा गुरु कह देवे, बाद शिष्य-"इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं" कह कर बैठ कर जीमणा गोडा ऊँचा करके जोडे हुए दोनों हाथोंसे ओघा तथा मुहपत्ति मुखके , * आगे रख कर कहे 'भगवन् ! सूत्र कहूं !' गुरु कहे-'कड्ढेह'। बाद १-१अथवा३-३नवकार तथा करेमि भंते०! कह । कर "चत्तारि मंगलं' इत्यादि तीनों आलावे और "इच्छामि पडिक्कमिउंजो मे राइओ०" तथा "इच्छामि पडिक्कमिडं। इरियावहियाए०"कह कर पगामसिजाए०कहे, “तस्स धम्मस्स केवली पन्नत्तस्स” कहते हुए खडे होजाय "वंदामि || जिणे चउव्वीस्सं" तक संपूर्ण कह कर दो वांदणे देवे और गुरुको अब्भुट्टियो (१) खमावे, बाद दो वांदणे देकर श्रावक नम्बर २ 'वांदणे देनेका विचार' देखो । (१) स्खडा हुआ आधा नमकर “इच्छा० संदि० भग० । अब्भुढिओमि अभ्भितर राइयं खामेउ?" [SI इतना कहे बाद गुरु कहे 'खामेह' बादमें “इच्छं खाममि राइयं" ऐसे कहते हुए संडासे पूंजके गोडों ऊपर बैठकर जीमणी तरफ खोले में मोघा रखे और डावे हाथ से मुनके आगे मुहपत्ति लगा कर जीमणा हाथ गुरुके चरणोंके लगावे, बाद "जं किंचि अप्पतिय" यहां से लगा कर "मिच्छामि दुक्कडं" तक संपूर्ण पाठ कहे। न ॥४ ॥ दुकड" तक सपणे सहपत्ति लगा कर जोसे कहते हुए संडास भूगा । अम्भुट्टिबोमि अभिमा Jain Education Intern SSII 2010_05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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