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________________ साधुसाध्वी ॥४९॥ X+ 4 + + अमावसको ईशान कोणमें योगिनी रहती है । लोच करा चुके बाद लोच करने वाले के हाथ दबावे और विधिस्थापनाचार्य के आगे इरियावही पडिक्कमे, खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं ? || संग्रहः इच्छं, कहकर "जयउ सामिय" चैत्यवंदन तथा जंकिंचि० नमुत्थुणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केवि साहू० नमोऽर्हत्० उवसग्ग हरं० तथा जय वीयराय०! कहकर गुरुके पास आकर मुहपत्ति पडिलेहकर दो वांदणे देवे और आगे लिखे मुजब सात खमासमणे देवे१-खमा० देकर कहे - ' इच्छा० संदि० भग० ! लोच पवेउं ?' गुरु कहे- 'पवेयह'। २- इच्छं इच्छामि खमा० देकर कहे- 'संदिसह किंभणामो ?' गुरु कहे- 'वंदित्ता पवेयह'।। ३- इच्छं इच्छामि खमा० देकर कहे- 'केसा मे पजुवासिया ' गुरु कहे ' दुक्करं कयं , इंगिणी सा हिया' बाद 'इच्छामो अणुसहिँ ' कहे ।। ४- खमा० देकर कहे- ' तुह्माणं पवेइयं संदिसह साहणं पवेएमि ' गुरु कहे- 'पवेयह ' । ५- इच्छं इच्छामि खमा० देकर तीन नवकार गिणे । + + -+-+-A-ARI- RI ॥४९॥ ++-XIX ___Jain Education Intem ww.jainelibrary.org For Private & Personal use only 2010_05
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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