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________________ साधुसाध्वी ॥ ४८ ॥ Jain Education Intern | गुरु कहे- ' करावेह अणुन्नायं मए ' | बाद ' इच्छं ' कहकर खमा० देवे । लोच करने वाला कराने वाले से यदि छोटा हो ? तो लोच करने वाला कराने वाले के आगे खमा० देकर | कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! उच्चासण संदिसाउं ?, इच्छं इच्छामि खमा०, इच्छा० संदि० भग० ! उच्चासण ठाउं ?, इच्छं' कहकर खमा० देवे । लोच कराने वाला करने वाले से यदि छोटा होवे ? तो लोच कराने वाला | करने वाले के आगे खमा ० देकर कहे- 'इच्छकारी भगवन् लोयं करेह' । ' इच्छं ' कहके खमा ० देवे । जिस दिन बुध, गुरु, शुक्र, या सोमवार होवे ? तथा पुनर्वसु, पुष्य, रेवती, चित्रा, श्रवण, धनिष्ठा, मृगशिरा, अश्विनि, हस्त, इनमें से कोई भी नक्षत्र होवे ? अथवा कृत्तिका, विशाखा, मघा और भरणी इन चार [४] नक्षत्रों को छोडकर चाहे जो नक्षत्र होवे ? उस दिन लोच कराना, योगिनी [ जोगिणी ] को पूंठ में अथवा दाबी बाजु रखकर लोच कराने बैठना । एकम और नवमी को पूर्वमें, तीज और इग्यारस को अग्नि कोणमें, पाँचम और तेरसको दक्षिणमें, चौथ और बारस को नैऋत्य कोणमें, छठ और चउदसको पश्चिममें, सातम और पूनमको वायव्य कोणमें, दूज और दशमीको उत्तर में, आठम और 2010-05 For Private & Personal Use Only विधिसंग्रह: 1187 11 ww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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