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________________ ॥५०॥ साधुसाध्वी ६-खमा० देकर कहे- 'तुम्हाणं पवेइयं, साहणं पवेइयं, संदिसह काउसग्गं करेमि ' गुरु कहे- 'करेह'। ७- इच्छं इच्छामि खमा० देकर ' केसेसु पन्जुवासिज्जमाणेसु सम्मं जन्न अहियासिअं कुइअं कक्कराइअं| संग्रहा छिअं, जंभाइअं तस्स ओहडावणिअं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ० कहकर " सागरवरगंभीरा " तक १ . लोगस्स का काउस्सग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहे, बाद गुरु को तथा सबी बडे साधुओं को वंदना करे। अपने हाथ से ही यदि लोच करे ? तो लोच कर चुके बाद इरियावही पडिक्कम कर "जयउ सामिय" । * चैत्यंवदन कहकर जंकिंचि० नमुत्थुणं० आदि कहते हुए जय वीयराय ०! तक कहे। बाद गुरु आदि सबी बडे है साधुओंको वंदना करे, बाकी मुहपत्ति पडिलेहण तथा सात खमासमणे देने आदि क्रिया न करे। २२ पंचशक्रस्तव देव वंदन विधिःपहले दोनों गोडे भूमि उपर लगा कर बैठा हुआ योगमुद्रा (१) से नमुत्थुण (२) कहे; बाद इरियावही (१)-दोनों खुणी पेटउपर लगाके अंगुलियों के बीच में अंगुलियां डालकर दोनों हाथ जोडना और पद्म (कमलफूल ) के आकार से हाथों को रखना उसका नाम योगमुद्रा है। (२)-चैत्यवंदन बृहद्भाष्य में लिखा है कि-"समा० देकर 'इच्छा संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं, इच्छं' कहकर चैत्यवंदन कहे बाद नमुत्थुणं कद्दे"। ॥५०॥ Jain Education Intern UDI 2010_05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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