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साधुसाध्वी ६-खमा० देकर कहे- 'तुम्हाणं पवेइयं, साहणं पवेइयं, संदिसह काउसग्गं करेमि ' गुरु कहे- 'करेह'।
७- इच्छं इच्छामि खमा० देकर ' केसेसु पन्जुवासिज्जमाणेसु सम्मं जन्न अहियासिअं कुइअं कक्कराइअं| संग्रहा छिअं, जंभाइअं तस्स ओहडावणिअं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ० कहकर " सागरवरगंभीरा " तक १ . लोगस्स का काउस्सग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहे, बाद गुरु को तथा सबी बडे साधुओं को वंदना करे।
अपने हाथ से ही यदि लोच करे ? तो लोच कर चुके बाद इरियावही पडिक्कम कर "जयउ सामिय" । * चैत्यंवदन कहकर जंकिंचि० नमुत्थुणं० आदि कहते हुए जय वीयराय ०! तक कहे। बाद गुरु आदि सबी बडे है साधुओंको वंदना करे, बाकी मुहपत्ति पडिलेहण तथा सात खमासमणे देने आदि क्रिया न करे।
२२ पंचशक्रस्तव देव वंदन विधिःपहले दोनों गोडे भूमि उपर लगा कर बैठा हुआ योगमुद्रा (१) से नमुत्थुण (२) कहे; बाद इरियावही
(१)-दोनों खुणी पेटउपर लगाके अंगुलियों के बीच में अंगुलियां डालकर दोनों हाथ जोडना और पद्म (कमलफूल ) के आकार से हाथों को रखना उसका नाम योगमुद्रा है। (२)-चैत्यवंदन बृहद्भाष्य में लिखा है कि-"समा० देकर 'इच्छा संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं, इच्छं' कहकर चैत्यवंदन कहे बाद नमुत्थुणं कद्दे"।
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