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साधुसाध्वी र बीचमेंसे यदि बिल्ली निकले ? तो उसी समय आगे लिखा हुआ विधि करना-
॥ ४१ ॥
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"जा सा काली कब्बडी, अख्खहि कक्कडियारी । मंडल माहे संचरी हय पडिहय मज्जारी ॥ १ ॥" यह संपूर्ण गाथा १ वार कहे और इसीका चौथा पद ३ वार कहे, बाद खमा० देकर ' इच्छा० संदि० भग० ! खुद्दोवद्दव ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूं ?, इच्छं, खुद्दोवद्दव ओहडावणत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहकर शांति कहे । अथवा पडिकमणा पूरा होजाने के बाद छींकके विधिमें कहे अनुसार अपशकुनादि निमित्त तीन (३) काउस्लग्ग करे, बाद उपर लिखी गाथा तीन (३) वार पूरी कहे और डावे पैरसे जमीन को दबावे ॥ १५- द्वादशावर्त्त वंदना विधिः
गुरुके आगे आधा नमकर "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !, ( ( १ ) लाभ ), कह लेसहं ?, (जह गहियं पुव्व साहूहिं), आवस्सियाए, (जस्स य जोगो), सिज्जातर ?, (अमुक)" इतना कहे बाद खमा० देकर (१) ये ब्राकीट () में के शब्द तो गुरुके बोलनेके हैं और ब्राकीट से बाहर के शब्द शिष्य के बोलनेके हैं।
2010 05
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विधि -
संग्रह:
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