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________________ मीर साधुसाध्वी या एक मंडलीके साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाओंमें से यदि किसी को छींक होवे ? तो पडिकम्मणा पूरा होने के बादशी ॥४॥ आगे लिखे मुजब तीन काउस्सग्ग करने-खमा० देकर 'इच्छा ० संदि • भग • ! अपशकुन दुनिमित्तादि ओहडावण निमित्तं काउस्सग्ग करूं ?, इच्छं अपशकुन दुनिमित्तादि ओहडावण निमित्तं करेमि काउस्सग्गं, | * अन्नत्थ०' कहकर १ नवकार का काउस्सग्ग करे, पारकर प्रगट १ नवकार कहे । दूसरा खमा० देकर फिर है, इसी मुजब २ नवकार का काउस्सग्ग करके प्रगट २ नवकार कहे । तीसरा खमा० देकर ऊपर लिखे मुजब है ही ३ नवकारका काउस्सग्ग करके प्रगट ३ नवकार कहे। इस प्रकार ये तीन काउसग्गतो पडिक्कमणा करने वाले सब जणे करें, और जिसको छींक हुई हो ? उसके वास्ते यह है कि-छींक यदि पक्खी में होवे ? तो १५ दिन तक, चौमासीमें होवे ? तो ४ महिने तक और संवच्छरी में होवे ? तो १ वर्ष तक अपनी शक्ति के अनुसार कुछ विशेष तपस्या भी करनी चाहिये ॥ १४- मार्जारी मंडली प्रवेश दोष निवारण विधिःपांचों पडिक्कमणोंमेंसे कोईभी पडिकमणा करते हुए स्थापनाचार्य और पडिककमणा करने वालों के XXXXXXXXX XNXNSENSATARAYARIAXXNXXX ॥४० Jain Education Intern For Private & Personal use only Www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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