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________________ ॥ ४२ ॥ साधुसाध्वी राइमुहपत्ति पडिलेहे और दो वांदणे देवे, बाद 'इच्छा० संदि० भग० ! राइयं आलोउं ?' इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० कहकर " सव्वस्स वि राइय" इत्यादि कहे, बाद दो वांदणे देकर दो खमासमण देवे और " इच्छकार सुहराइ " कहकर खमा ० देकर अभ्भुडिया खमाकर दो वांदणे देकर पञ्चखाण करे, बाद खमा० देकर 'इच्छा' संदि० भग० ! बहुवेल संदिसाउं ?' इच्छं इच्छामि खमा० ' इच्छा० संदि० भग० बहुवेल करूं ?' इच्छं, कहकर खमा ० देवे | १६- पाक्षिकादि गुरुवंदना विधि: जिन साधुओंने पक्खी, चौमासी अथवा संवच्छरी पडिकमणा गुरुसे जुदा किया हो ? वे साधु दूसरे दिन सवेरे गुरु के सामने इरियावही पडिक्कमकर खमा ० देकर राइ मुहपत्ति पडिलेहें, दो वांदणे देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! राइयं आलोउं ?' इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० कहकर " सव्वस्स वि राइय" इत्यादि कहें। खमा० देकर पक्खी, चौमासी अथवा संवच्छरी मुहपत्ति पडिलेहकर दो वांदणे देकर 'संबुद्धाखामणेणं Jain Education Internat2010_05 For Private & Personal Use Only विधिसंग्रह: ॥ ४२ ॥ www.jainelibrary.org.
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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