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________________ साधुसाध्वी बाद गुरु “ सव्वस्स वि (१) पक्खिय" इत्यादि कह देवे पीछेसे शिष्य "सव्वस्स वि पक्खिय” इत्यादि विधि॥ ३४॥ बोलता हुआ "इच्छा० संदिसह" तक कहे, बाद गुरु 'चउत्थेण (२) पडिकमह' कह देवे पीछे शिष्य कहे तस्स मिच्छामि दुक्कडं बाद दो वांदणे देवे और 'इच्छा० संदि० भग०! देवसियं आलोइयं पडिकंतं पत्तेय खामगणं अभ्भुडिओमि अम्भितर पक्खियं खामेउं ?, इच्छं खामेमि पख्खियं इत्यादि संबुद्धा खामणेणंकी तरह पहले गुरु खमा लेवे बाद शिष्यभी अपनेसे बड़े सब साधुओंको इसी मुजब अभ्भुडिया खमावे, श्रावकोंके साथभी । 15 मुह जबानीसे क्षमत क्षामणे करे, दो वांदणे देकर ' इच्छा० संदि० भग०, देवसियं आलोइयं पडिकंतं . पख्खियं (३) पडिक्कमावेह' गुरु कहे ' सम्म पडिक्कमह ' शिष्य कहे- 'इच्छं'। बादमें जिसने पक्खिसूत्र । बोलने का आदेश लिया हो? वह साधु करेमि भंते! तथा 'इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे पख्खिओ (४)' इत्यादि । SASSASSASASHXATXOXAXA EXAEXAXNXXXXXXXXXX ॥३४॥ (१) चौमासी में "चोमासिय" और संवच्छरी में “संवच्छरिय" कहना (२) चौमासी में “छट्टेण०" और संवच्छरी में "अट्टमेण" | साना (३) चौमासी में "चौमासियं पडिकमावेह" और संवच्छरी में "संवच्छरियं पडिक्कमावेह कहना । (४) चौमासी में "चोमा-| सिओ" और संवच्छरी में "संवच्छरीओ" कहना । Jain Education Internat2 010_05 For Private & Personal use only Yiw.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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