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________________ साधुसाध्वी । ___ बाद खडे होकर आसनके पिछले भागमें जाकर 'इच्छा०संदि० भग०! पक्खियं (१) आलोउं ? इच्छं। ॥३३॥ आलोएमि जो मे पक्खिओ०' इत्यादि : मिच्छामि दुक्कडं ' तक कहकर 'इच्छा० संदि० भग०! पक्खि (२) ३ सय अतिचार आलोउं ? ' ऐसा कहकर अतिचार कहे, बाद श्रावकोंके अतिचार श्रावक कहें, बाद में गुरु कहें ___ एवं कारे साधुतणे धर्मे एकविध असंजम तेत्रीश आशातना प्रमादपद पर्यंत मूलगुण उत्तरगुण एकसो । चालीस अतिचार [ श्रावक (३) तणे धर्मे समकीत मूल बारे व्रत एकसो चौवीस अतिचार] मांहिं जे कोइ । अतिचार पक्ष (४) दिवस माहिं सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुओ होय ते सवि हु मने वचनें कायाए । करी मिच्छामि (५) दुक्कडं ।" **** (१) चौमासी में 'चोमासियं आलोउं ? इच्छं आलोएमि जो मे चोमासिओ' इत्यादि कहे, और संवच्छरी में 'संवच्छरियं आलोउ ? ४ इच्छं आलोएमि जो मे संवच्छरिओं' इत्यादि कहे। (२) चौमासी में चौमासी का और संवच्छरी में संवच्छरी का नाम बोलना । (३) श्रावक साथमें होवे ? तो यह ब्राकिटमें का पाठ बोलना, अन्यथा नहीं। (४) चौमासी हो? तो "चौमासी दिवस माहि" और संवच्छरी हो? तो "संबच्छरी दिवस माहि" कहना । (५) साधु श्रावक सब जणे "मिच्छामि दुकडे" कहें। ॥३३॥ ******* Jain Education IntemR 2010_05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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