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साधुसाध्वी नीचे न बैठना, पूर्व तथा उत्तर दिशाके सामने और जिस तरफका पवन चलता हो ? उस तरफ, सूर्य और गांवके सामने पीठ नहीं करनी, बैठते समय दंडा डाबी साथलमें रखे, पाणी की तरपणी जीमणे हाथमें तथा ईंटके टुकड़े या वस्त्रखण्ड डाबे हाथमें रखे, जब कि शंका दूर होजाय ? तब दूर हटकर ईंटके टुकड़ों से या वस्त्रखंडसे शरीर लूस लेवे, बाद पाणीसे शुद्धि करके उठकर दूर आकर 'वोसिरे ३' कहे। बाद 'निस्सिही ३' कहते हुए उपाश्रयमें आकर इरियावही पडिक्कमे और तरपणी लूसकर रख देवे । ९ - संध्या - पडिलेहण - विधिः
पिछले प्रहरमें गुरुके आगे खमा० देकर कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! बहुपडिपुन्नापोरिसी' ? गुरु | कहे- 'तहत्ति' । बाद हमेश (रोज) वापरनेके उपकरण लेकर पासमें रखकर खमा पूर्वक इरियावही पडिक्कमे, खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! पडिलेहण करूं ?, इच्छं' इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग० ! वसति प्रमार्ज् ?, इच्छं' कहकर मुहपत्ति पडिलेहे, फिर खमा ० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! पडिलेहण संदिसाउं ?, इच्छं' इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग ! अंग पडिलेहण करूं ?, इच्छं' कहकर
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2010 05
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