________________
साधुसाध्वी || मुहपत्ति पडिलेहे, बाद कंदोरा (१) तथा चोलपट्टा (२) पडिलेहकर काजा निकाले, काजा परठकर सो सौ ॥२१॥ (१००) हाथ तककी भूमिमें सवेरेकी तरहँ वसति संशोधन करे, जो कोई हड्डी या कलेवर हो ? उसको दूर 2 संग्रहः
हटवा कर 'निसिही ३ मत्थएण वंदामि भगवन् ! सुद्धावसही' कहते हुए उपाश्रयमें आकर गुरुके सामने । Tel®खमा० देकर इरियावही पडिक्कमे, खमा० देकर कहे-'इच्छा० संदि० भग० ! वसति पवेउं ?' गुरु|
कहे 'पवेयह' फिर इच्छं इच्छामि खमा० देकर कहे-'भगवन् ! सुद्धावसही' गुरु कहे-'तहत्ति' ४ बाद । स्थापनाचार्य के सामने खमा० देकर 'इच्छकारी भगवन् ! पसायकरी पडिलेहणा पडिलेहावोजी' कहकर
स्थापनाचार्य पडिलेहेa कंबली पडिलेहकर समेटके बिछादेवे, उसपर स्थापनाचार्यजी खोलकर जुदे रखे, बाद समेटी हुई तथा बिछाई हुई मुहपत्तियां जुदी जुदी करके पहले उनकी और पीछे सूतकी मुहपत्ति पडिलेहकर ।
(१) उपवासके दिन ओघा पडिलेहनेके बाद कंदोरा तथा चोलपट्टा पडिलेहे। (२) साध्वियां चौलप की जगह पहरने का साडला
XEXNXXXXXXXXXXX
|पडिलेहे ॥ * इस निशानी से लगाकर इस निशानी तककी विधि जिसने काजा निकाल कर वसति संशोधन कियाहो? उसीको करना माचाहिये, अन्यको नहीं, सब उपकरण पडिलेहनेके बाद यदि काजा निकाले ? तो यह विधिभी पीछेसेही करे।
JainEducation InternaS
010_05
For Private & Personal use only
ww.jainelibrary.org