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विधि
साधुसाध्वी ___ बाद जिस जगह आहार पाणी किया हो ? उसी जगह बैठा हुआ स्थापनाजी के सामने इरियावही | ॥ १९॥ पडिक्कमे, खमा० देकर-इच्छा. संदि० भग! चैत्यवंदन करूं ?, इच्छं' कहकर “जयउ सामिय" संग्रहः
चैत्यवंदन कहे, बाद जं किंचि० नमुत्थुणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केवि साहू० नमोऽर्हत्० उवसग्गहरं० तथा all" आभवम खंडा" तक जय वीयराय ! कहे। | अष्टमी चउदस आदि उपवास के दिन दुपहरको पांच शकस्तवसे देववंदन अवश्य करने चाहिये।
-स्थंडिल जाने की विधि:'आवस्सही ३' कहते हुए उपाश्रयसे निकलकर उतावल रहित बात चीत नहीं करते हुए आगे आगे भूमि देखते हुए गांमके बाहर जाकर पवित्र भूमिसे ईंटके टुकड़े आदि पूंज कर लेवे, या उपाश्रयसे ही वस्त्रखण्ड लेजावे बाद दूर जाते हुवे वनस्पति या अन्य (कीड़ी तथा उद्देही आदि) जीवजंतु रहित जगहमें | जाकर ऊंचे नीचे और तिरछे चारों तरफ देख लेवे कि-कोई मनुष्य वगैरह आता जाता तो नहीं है, ॥ १९॥ बाद “अणुजाणह जस्सुग्गहो” ऐसा कहकर ठल्ले बैठे, जिसके फल फूल आते हो ? उस वृक्ष (झाड़) के
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