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साधुसाध्वी हा पञ्चक्खाण आदि किया जाताहै।
५-चैत्यवंदन-विधिः॥१३॥
___ 'निसिही ३' कहते हुए मंदिरमें जातेही भगवान्को नमस्कार करके तीन प्रदक्षिणा देवे, इरियावही पडिक्कमके तीन खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं ?, इच्छं' कहकर चैत्यवंदन कहे, बाद जंकिंचि० नमुत्युणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केवि साहू० नमोऽर्हत् कहकर स्तवन कहे, बादमें "आभवम-2 खंडा" तक जय वीयराय ! कहकर खडे होकर अरिहंत चेइयाणं० अन्नत्य० कहकर एक नवकारका काउ-11 स्सग्गकरे, पारकर नमोऽर्हत्० कहकर एक थुइ कहे, बाद खमा० देकर पञ्चक्खाण करना।
५-उग्घाडा-पेरिसी-विधि:छः घडी दिन चढे बाद गुरुके आगे "उग्घाडा पोरिसी” कहकर इरियावही पडिक्कमे, बाद खमा० देकर एक साधु कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! उग्घाडा पोरिसी' गुरु कहे- 'तहत्ति' फिर खमा० देकर । इच्छा० संदि० भग० ! पडिलेहण करूं ?, इच्छं' इस तरह आदेश मांगकर गुरु मुहपत्ति पडिलेहे बाद सब
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