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________________ ॥१४॥ साधुसाध्वी || जणे खमा० देकर ऊपर मुजब आदेश मांगकर २५ बोलसे मुहपत्ति पडिलेहें। ६-गौचरी-जानेकी तथा आलोचनेकी विधि:3 गौचरीका समय हो जाने पर कंबली बिछाके उस पर पात्रं आदि सब उपकरण छूटे छूटे रखे, बाद झोली पडिलेह कर छेडों के गांठे लगावे, बाद १० बोलसे पूंजणी पडिलेहे, उससे पात्रे-तरपणी-चेतना-डाब-|| डिया आदि २५-२५ बोलसे पडिलेहे, और पडले-रजस्त्राण आदिभी सब उपकरण २५-२५ बोलसे तथा तरपणीका डोरा १३ बोल बोलते हुए पूंजणीसे पडिलेहे, (१) बाद झोली में पात्रे रखकर डाबे हाथमें झोली || लेकर ऊपर पडले ढांक देवे और तरपणीभी उसी हाथमें लेकर चद्दरके छेडेसे ढांक लेवे, बाद दंडा हाथमें | लेकर 'आवस्सही ३' कहते हुए उपाश्रयसे निकलकर गौचरी जावे। दंडा भूमि ऊपर टिकाते हुए किसीके साथ बात चीत करते हुए या हँसते हुए रास्तेमें न चले, उतावल | ॥१४॥ (१) उपवासके दिनभी उग्घाडा पोरिसी भणानेके बाद इसी मजब पात्रे आदिकी पडिलेहणा जरूर करनी चाहिये। XBRANA RRRRRRRRRXNXXXXX Jain Education Inter M2010-05 For Private & Personal Use Only Tww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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