SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुसाध्वी शिष्य कहे-'कहं लेसहं गुरु कहे-'जह गहियं पुत्व साहुहिं ' शिष्य कहे-'इच्छं आवस्सियाए' गुरु कहे-'जस्स ॥१२॥ य जोगो' शिष्य कहे-'सिजातर ? ' गुरु कहे-'अमुकका घर'। यानी जिसका घर सिज्जातर (१) किया हो ? है उसका नाम कहे, बादमें गुरुको अभ्युत्थान वंदना तथा आचार्यादि पदस्थको द्वादशावर्त वंदना करे ३-अभ्युत्थान गुरु वंदना विधिः। दो खमा० देकर "इच्छकार सुहराइ" कहे, खमा० देकर अब्भुट्टिया खमावे, फिर खमा० देकर इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पञ्चक्खाणनी आस' कह कर पञ्चक्खाण करे, बाद खमा० देकर 'इच्छा संदि० भग० ! बहुवेल संदिसाउं ?, इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग० ! बहुवेल करूं ?, इच्छं कह कर फिर खमा० देवे। अपनेसे बडे साधुओंको इसी विधिसे वंदना करनी, केवल पच्चक्खाण तथा , पिछले तीन खमा० देकर दो आदेश मांगना. यह न करे, क्योंकि जो सबसे बडे (मोटे ) हो ? उनके पास (१) सिजातर किसको कहते हैं ? और उसके घरसे कितनी देर बाद कितनी देर तक क्या क्या चीज न लेना ? इसकी हकीकत जाननेके वास्ते नम्बर ४ "सिज्जातर विचार" देखो। Jain Education Interne t 2010_05 For Private & Personal use only Milwww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy