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___ यो प्रमत्तः कारणे निषष्णः सन् ॥ १४८५ ॥ अथ पञ्चमः 'धम्म' धम्मं सुकं च दुवे, नवि झायइ नवि य अट्टरुदाई। एसो काउस्सग्गो, निसण्णओहोइ नायवो॥१४८६॥ __अधिकाराभिषण्णः सन्न ध्यातीति ज्ञेयं ॥ १४८६ ॥ अथ षष्ठः ' अहूँ'
अट्ट रुदं च दुवे, झायइ झाणाइं जो निसन्नो य । एसो काउस्सग्गो, निसन्नगनिसन्नओ नाम॥१४८७॥ ॥ ॥१४८७ ॥ अथ सप्तमः ‘धम्म' KI धम्म सुक्चदुवे झायइ, झाणाइं जोनिवन्नो उ।एसो काउस्सग्गो, निवनुसिओ होइ णायव्वो ॥१४८८ | अप्रमत्तः कारणानिर्विण्णः सुप्तः ॥ १४८८ ॥ अथाष्टमः 'धम्म'
धम्म सुक्कं च दुवे, नवि झायइ नवि य अट्टरुदाई। एसो काउस्सग्गो, निवण्णओ होइ नायव्वो॥१४८९॥ ___ अधिकारात्स्वभावसुप्तः सन् ॥ १४८९ ॥ अथ नवमः ‘अट्ट' अहँ रुदं च दुवे झायइ झाणाइं जो निवन्नो उ । एसो काउस्सग्गो, निवन्नगनिवन्नओ नाम ॥१४९०॥
प्रमादानिर्विणः सन् ॥ १४९० ॥ 'अत', + अतरंतो उ निसन्नो, करिज तहवि य सहू निवन्नो उ । संबाहुवस्सए वा, कारणियसहूवि य निसन्नो
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