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उपशमश्रेणिः
सं० लोभ अप्र० लोभ | प्र० लोभ
सं० माया|| अप्र० माया प्र० माया
सं० मान |
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अप्र० मान प्र० मान
सं० क्रोध अप्र० क्रोध प्र. क्रोध
पुं० | हास्य रति | अरति | भय शोक जुगुप्सा
स्त्रीवे०
न००
| मि० मिश्र स० अन० क्रोध अन० मान |अन०माया अन० लोभ
क्षपक श्रेणिः | सं० लोभ सं०माया समान
सं० क्रोध
| पुं० वेद हास्य | रति| अरति | भय शोक जगुप्सा
स्त्रीवेद ।
| न० वेद अप्र० प्र०|अप्र०प्र० अप्र० प्र० अप्र० प्र० धमान मान माया माया लोभ लोभ
सम्यक्त्व मिश्र
भिथ्यात्व अन० क्रोध अन० मान अन० माया अन० लोभ
| अण मिच्छ मीस सम्मं, अट्ठ नपुंसिस्थीवेयछक्कं च। पुंवेयं च खवेइ, कोहाइए य संजलणे ॥१२१॥
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