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________________ सर्वार्हमातृपित नामानि। 2 मिहिलौ सोरिअनयरं वाणौरसि तह य होइ कुंडपुरं ।उसभाईण जिणाणं जम्मणभूमी जहासंख॥३८॥ मरुदेवि विजय सेणां सिद्धयों मंगलो सुसीमा य । पुहँवी लक्खर्ण सामा नंदी, विण्हू जयो रामौ ॥३८५॥ सुजसी सुवयों अइरौं, सिरी देवी पौवई। पउौवइ अवप्पो अ,सिवे वम्मौ तिसली इस ॥ ३८६ ॥ | नाभी जिअसत्तू आ, जियारी संवरे इअ । मेहे" धेरै पइँटे अ, महसेणे अ खत्तिए ॥ ३८७ ॥ सुगीवे दढरहे विण्हू वसुजे अ खत्तिए । कयवम्मी सीहसणे अ, भा] विससेणे इअ ॥ ३८८ ॥ 4 सूरे सुदंर्सणे कुंभे सुमित्त विजैए समुद्दविजएँ । राया अ अस्सैसेणे सिद्धत्थेऽवि य खत्तिए ॥३८९॥ सव्वेऽवि गया मुक्खं, जाइजरामरणबंधणविमुक्का। तित्थयरा भगवंतो, सासयसुक्खं निरावाहं ॥३९०॥ सव्वेऽवि एगवण्णा निम्मलकणगप्पभा मुणेयव्वा। छक्खंडभरहसामी, तेसि पमाणं अओ वुच्छं ॥३९१॥ स्पष्टाः किन्तु चन्द्रानना काकन्दी पुर्यो, विजया सेना लक्ष्मणा विष्णुः सुव्रता अचिरा श्रीः देवी मेघः धरः विश्वसेनः, च पादपूये, सुमित्रः विजयः ॥ ३८२-९१ ॥'पंच' पंचसय अद्धपंचमै बायोलीसा य अद्धधणुअं च।इगयाल धणुस्सैद्धं च चउत्थे पंचमे चत्तौ ।।३९२॥ Jain Education in For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600031
Book TitleAvashyakaniryuktidipika Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManekyashekharsuri
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala Surat
Publication Year1939
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size22 MB
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