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________________ नाग १ टीका पंचसंहीश्यिपर्यंताः प्रत्येकमंगुलासंख्येयत्नागमात्राणि सूचीरूपाणि खंमानि यावंत्येकस्मिन् प्रतरे 4 नवंति, तावत्प्रमाणाः प्रागविशेषेणोक्ताः, तथाप्यंगुलाऽसंख्येचनागस्य विचित्रत्वादिलं विशे NE षाधिकत्वमुच्यमानं न विरोधमास्कंदति, नक्तंच-एएसिणं नंते सइंदियाणं एगिंदियाणं ॥२५३॥ बेइंदियाणं तेइंदियाणं चनरिंदियाणं पंचेंदिया पजत्तापजत्ताणं कयरेकयरेदितो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा सवयोवा चनरिंदिया पजत्तगा, पंचेंदिया पजत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पजनगा विसेसादिया, पंचेंदिया अपजनगा असंखेजगुणा, चनारंदिया अपऊत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जनगा विसेसाहिया बेइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया' इत्यादि. तत नन्नये पर्याप्ताऽपर्याप्तरूपाः पंचेंडिया गिशेषाधिकाः, तेन्योऽपि पर्याप्ताऽपर्याप्तचतुरिंडिया विशेषाधिकाः, तेन्योऽपि पर्याप्ताऽपर्याप्तत्रींडिया विशेषाधिकाः, । तेन्योऽपि पर्याप्तापर्याप्तश्यिा विशेषाधिकाः, नक्तं च पर्याप्ताऽपर्याप्तपंचेंडियाद्यल्पबहु- * त्वावसरे-पंचेंदिया य थोवा विवजएण वियला विसेसाहिया इति' ॥ ६ ॥ ॥ मूलम् ॥–पजत्तबायरपत्नेय-तरु असंखेज इति निगोयान ॥ पुढवी ग्रामवाळ । ॥२५३॥ -Mon Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600027
Book TitlePanchsangraha Tika Part_1
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorMalaygiri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1910
Total Pages368
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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