________________
श्रीकल्प
कल्पमञ्जरी टीका
॥७९॥
"आषधानाम्-शालि-वाहि-गाधूम-यव-कलम-ममूर-तल-मुद्ग-माष-बल्ल-चणक कुलस्या-तसा-कुसुम्भ-काद्रव कमादीनाम् ; जलरुहाणाम् उदकाचक - पनक-शैवलक -लम्बुका-पावक-कशेरुको-स्पल - पद्म- कुमुदनलिन-पुण्डरीकादीनाम्, कुहनानाम् भूमिस्फोटकाभिधानानाम् आयकायकुहुणकुण्डुक्कोद्देहलिकाशलाकासर्पच्छत्रादीनाम, स्नेहमक्ष्माणाम् अवश्याय-हिमकुज्झटिकादीनाम्, पुष्पपूक्ष्माणाम् उदुम्बरादिपुष्पसरशमूक्ष्मजीनाम्, पनकमक्ष्माणाम् वर्षाकाले भूमिकाष्ठादौ समुत्पन्नानां पञ्चवर्णानां पनकाख्यम्रक्ष्मजीवानाम् , बीजमूक्ष्मागां= येभ्योऽङ्कुराः समुत्पद्यन्ते तेपा शाल्यादितुषमुखानाम् , हरितम्रमाणाम् नवीनोत्पद्यमानानां भूमिसवर्णानां चिल्ली, पालकी आदि हरित; बीज से तत्काल फूटे अंकुर; शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ, कलम, ममूर, तिल, मूंग, उड़द, वल्ल, चना, कुलथ, अलसी, कुसुम्भ, कोदों, कांगनी आदि ओषधि (पौधे ); उदकावक, पनक, शैवलक, लम्बुका, पावक, कशेरु, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, पुण्डरीक आदि जल में उत्पन्न होनेवाली वनस्पतिया; कुहन (भूमि फोड़कर निकलने वाली) तथा आयकाय, कुहुण, कुंडुक्क, उद्देहलिका, शलाका, सपंछत्र
आदि वनस्पतियाँ तथा-स्नेहमक्ष्म-ओस, हिम, कुहरा आदिः पुष्पमूक्ष्म (गुलर के फूल के सदृश मूक्ष्मजीव), पनकमुक्ष्म (वर्षाऋतुमें भूमि तथा काष्ठ आदि पर उत्पन्न होने वाले पाँच वर्ण के पनक नामक सूक्ष्मजीवलीलफूल ); बीजमूक्ष्म (जिनसे अंकुर उत्पन्न होते हैं, वे धान आदि के तुष के मुख):हरितमूक्ष्म (नवीन उत्पन्न होने वाले, भूमि के समान रंग वाले होने के कारण सरलता से दिखाई न देने वाले)।
भांथा तsei संपुर: शालि, प्रीति, को, सम, योमा, भाई भसू२ तिस. भा. भ6, पास या ४थी, सी, ई, ४२, sini वियरे मौषधि तथा पन४ (elea) ana, पा५५, ४२३. 64a (म), પદમ, કુમુદ, નલિન, પુંડરીક વિગેરે પાણીમાં ઉત્પન્ન થવાવાળી વનસ્પતિઓ; તથા કુહન (જમીનમાંથી ફાટી નીકળે તે), આકાય, કુણ, કંડક, ઉદેહલિકા, સં૫છત્ર આદિ વનપતિઓ.
ने सूक्ष्म ' मेसि, भि, आ४, विगेरे. “Y०५सूक्ष्म' भूस२॥ ३२॥ २६भ७१, 'पन सूक्ष्म'વર્ષાઋતુમાં ભૂમિ અથવા લાકડા ઉપર ઉત્પન્ન થનારા પાંચ વર્ણના પનક નામના જી જે લીલલ કહેવામાં આવે છે તે. “બીજસૂમ' જેનાથી અંકુરા ઉત્પન્ન થાય તે ધાન આદિના તુષના અગ્રભાગ, “હરિતસૂક્ષમ '-નવીન ઉત્પન્ન થનારા ભૂમિ જેવા રંગવાળા હોવાથી જદી નજરમાં નહિ આવનારા છો, એ બધા એકેન્દ્રિય જીવે છે, એની
॥७
॥
Jain Education
tational
For Private & Personal Use Only
odwww.jainelibrary.org.