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श्रीकल्प
सूत्र
॥५६४॥
वा चतुष्केषु वा चत्वरेषु वा चतुर्मुखेषु वा महापथेषु वा ग्रामस्थानेषु वा नगरस्थानेषु वा ग्रामनिधमनेषु वा नगर निर्धमनेषु वा आपणेषु वा देवकुलेषु वा सभासु वा प्रपासु वा आरामेषु वा उद्यानेषु वा वनेषु वा वनषण्डेषु वा श्मशान - शून्यागार - गिरिकन्दर- शान्ति - शैलो - पस्थान - भवन - गृहेषु वा संनिक्षिप्तानि तिष्ठति सिद्धार्थराजभवने संहरन्ति ॥ ०५२ ॥
टीका – 'जप्पभिरं चे' - त्यादि । यत्प्रभृति यस्मात्कालादारभ्य च खलु श्रमणो भगवान् महावीरः अतएव जिनका कोई स्वामी ही नहीं था। ये निधान ग्रामों में आकरों में, नगरों में, खेटों में, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, निगम, आश्रम, संवाह और सन्निवेशों में, शृंगाटक ( तिकोने मार्ग) में, त्रिक (तीन मार्गों के संगम) में, चौक में, चवरों में (जहाँ बहुत मार्ग मिलते हों ऐसे स्थानों में), चार द्वारवाले स्थानों में, राजमार्ग में, उजड़े गाँव में, उजड़े नगर में, गाँव की नालियों में, नगर की नालियों में, दुकानों में, देवालयों में, सभास्थलों में, प्याउचों में आरामों में, उद्यानों में, वनों में, वनपण्डों में, श्मशानों में, सूने मकानों में, पर्वत की गुफाओं में शांतिगृहों (शांतिकर्म के स्थलों) में, शैलगृहों (पर्वत को उकेर कर बनाये गये गृहों में, उपस्थानगृहों (चौरा) में, तथा भवनगृहों (निवासगृहों) गड़े हुए थे, उन्हें वे देव सिद्धार्थ के भवन में लाने लगे ||०५२ ||
टीका का अर्थ - 'जं पभिई' इत्यादि । जिस समय से श्रमण भगवान् महावीर, देवानन्दा ब्राह्मणी के
या निधाना ने ने गाभेोभां आशमां, नजरे मां, पेटमां, मां, भणमां, द्रोलुभुमां, पत्तनमां, निगममां, व्याश्रममा, संवाहमां, सन्निवेशमां, शृंगामां (त्रिषु मार्ग' मां), त्रिमां (त्रशु भागना संगम ल्यां थता होय त्यां) - ચોકમાં, તથા ચવરમાં (જ્યાં ઘણા રસ્તા ભેગા થતા હોય ત્યાં), ચાર દ્વારવાળા સ્થાનમાં, રાજમામાં, ઉજ્જડ शामभां, Gळगड नगरमां, गाभनी नाजियोमां, नगरनी नाजियोमा, हुमनामां, हेवासयोमां, सभास्थणीमां, परवोमां, अवाडायामां, भाराभगृहमां, उद्यान मां, पनामा, बनष अमां, श्मशानामां, सूनां भडानां पर्यंतनी गुशोभ શાંતિગૃહોમાં (કિન્નાના પર્વતની ગુફાઓ માંહેલા ગૃહામાં), શલગૃહોમાં (પર્યંત ઉપર બનાવેલ ઘરમાં) ઉપસ્થાન– ગૃહેામાં (ચેારામાં), ભવનગૃહોમાં (નિવાસઘરમાં), આ ઉપરોક્ત સ્થાનો ઉપરાંત જ્યાં જ્યાં ધન-દોલત નિષ્ક્રિય અને સ્વામીરહિત થયેલાં હાય તે સને સિદ્ધાર્થ રાજાનાં ભવનેામાં અને ખજાનાઓમાં ભરવા લાગ્યા. (સ્૦૫૨) तेइत्यादि क्यारथी श्रमश भगवान महावीरने देवानंदानी त्रिशला
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0.02011
कल्प
मञ्जरी
टीका
सिद्धार्थराजभवने त्रिजृम्भक
देवकृतनिधान
समाहरणम्
॥५६४॥
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