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________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥५३२ Jar Jar Jar रयावेइ, रयात्रित्ता कोवियपुरिसे सहावेह, सद्दात्रित्ता एवं वयासी - खिष्यामेव भो देवाणुपिया ! अटुंगमहानिमित्तसुत्तस्थपाढए विसित्यकुसले सुमिणपाढए सदावेह, सद्दावित्ता एवं ममाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिगह ? तणं ते कोटुंबियपुरिसा सिद्धत्थेगं रन्ना एवं बुत्ता समाणा हा करयल परिम्ग हियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थर अंजलि क ' एवं देवो तहत्ति' आगाए विणएवं सिद्धत्थस्स रन्नो वयणं पडिसुर्णेति । तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जेणेव सुमिणपाढगाणं गिहा तेणेत्र उवागच्छंति, उनागच्छित्ता सुमिणपाढगे सद्दाति ॥ ०४८ || छाया - ततः खलु स सिद्धार्थो राजा श्रात्मनोऽदुरसामन्ते उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे अष्ट भद्रासनानि श्वेत्यत्रस्तृतानि सिद्धार्थमङ्गलोपचारकृतशुभकर्माणि रचयति, रचयित्वा नानामणिरत्नमण्डिताम् अधिकप्रेक्षणीयरूपां महार्घ पत्तनोद्गतां श्लक्ष्णबहुभक्तिशतचित्रस्थानाम् ईहामृगटषभतुरगनरम करविहगव्यालककिन्नररुरुशरभचमरकुञ्जरचनलतापद्मलताभक्तिचित्रां मुवचितत्रर कनकपत्ररपर्यन्त देशभागाम् आभ्यन्तरिक मूल का अर्थ - 'तणं से सिद्धत्थे' इत्यादि । तत्पश्चात् सिद्धार्थ राजा ने अपने से न अधिक दूर और न अधिक समीप में, पूर्व-उत्तर दिशा के कोने - ईशान कोण में आठ भद्रासन रखवाये । वे श्वेत वस्त्रों से आच्छादित थे और श्वेत सरसों तथा अन्य मांगलिक द्रव्यों से उनमें शुभ कर्म किया गया था। आसन रखवा कर एक पर्दा बीच में तनवा दिया गया था। वह पर्दा अनेक प्रकार के मणियों और रत्नों से मंडित था । अत्यधिक दर्शनीय रूपत्राला था, बहुमूल्य था और उत्तम पत्तन - नगर में बुना तथा बना था। मनोहर और सैकड़ो चित्रों से युक्त था। ईहामृग, वृषभ, तुरंग, नर, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु (एक प्रकारका मृग), शरभ - (अष्टापद), चमर ( चमरी गाय), कुंजर, वनलता तथा पद्मलता आदि को रचना से अद्भुत था । भूजना अर्थ - "तपणं से सिद्वत्थे" इत्याहि त्यार माह सिद्धार्थ राज्ये पोतानाथी हु हर पशु नहीं અને બહુ નજીક પણ નહીં એવી જગ્યાએ ઇશાનકાણમાં આઠ ભદ્રાસન મૂકાવ્યાં. તેમને સફેદ વસ્ત્રો વડે આચ્છાદિત કરેલાં હતાં, અને શ્વેત સરસવ તથા અન્ય માંગલિક દ્રવ્યેથી તેમાં શુભકમ કરવામાં આવ્યાં. આસન મૂકાવીને વચ્ચે એક પદો ખેંચાવ્યે. તે પૌ અનેક પ્રકારના મીએ અને રત્નથી મડિત હતા, અતિશય દર્શનીયરૂપાળેા હતે, ધણું કિ ંમતી હતા અને ઉત્તમ નગરમાં વર્ણàા તથા બનેàા હો. મનેહર અને સેકડા ચિત્રાવાળે हतो. डाभृग, वृषभ, तुरभ नर, भगर, पक्षी, सर्प, दिन्नर, रुरु (ड प्रहार भृग) शरल (अष्टाप) यमर (ચમરી ગાય) કુ ંજર, વનલતા તથા પદ્મલતા આદિની રચનાથી અદભુત લાગતા હતા. તેના ઇંડા ઉત્તમ સત્રણથી For Private & Personal Use Only Jain Education International 真 OR A FRAGRANA AAAAAHHABAKK कल्प मञ्जरी टीका स्वमपाठ कानां त्रिशलायाश्च कृते भद्रासन स्थापनम् ॥५३२॥ www.jainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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