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________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥५१०॥ Jain Education International सिद्धावस्थाप्राप्तिकाले यौगपद्येन स्थायिनो गुणाः, तत्प्रभृतयो ये नानाविधगुणाः = अनेकप्रकारका गुणास्त एव रत्नानि तेषां राशिः समूहः- तत्सदृशः सन् शाश्वतः सिद्धो भविष्यति ॥ सू०४३ ॥ १४- निद्धूमसिहिसुमिणफलं मूलम् — निद्धूमसिहिदंसणेणं अमू सिहिब्व पूओ पावगो य भविस्सइ । झाणाणलेण अणाइकाली - सोहिस्सा । सुकझाण-विघडिय - घणघाइकम्ममलपडलो - लुसिय-विमल के वलणाणालोएण जहवट्टिया - सेस-भूयभवन्भावि - भाव -सहावा - वभासगो भविस्सइ । विविह- कठिण - कठिणयर-कठिणतमा - भिग्गह- नाणाविह - घोरतवचरणेण दढिघण- निद्धूम - जलिय - हुयवह- सरिसतेओ भवोवग्गाहिकम्मक्खवग-लेस्सातीय- अप्पकंप - परमनिज्जराकारण-मुहुमकिरियअनियट्टिणाम - तइयसुकज्झाणेण निस्सेसियकम्ममलकलंको अवात्तसुद्धनियसहावो उड्ढगइपरिणामो देवमणुस्सतिरिय- घण- घणाघण-कय-नाणाविह-उवसग्ग- वारि-हारा रय- अप्पडिहयज्झाणसिहो निव्वा यद्वाणद्वियaffrent for उड्ढगामी भविस्सइ ॥ ०४४ ॥ निर्धूमशिखिस्वप्नफलम् छाया — निर्धूमशिखिदर्शनेन असौ शिखीव पूतः पावकश्च भविष्यति । ध्यानानलेन अनादिकालीनात्ममलं शोधयिष्यति । शुक्लध्यान - विघटित-घनघातिकर्ममलपटलो- लसित - विमल केवलज्ञानालोकेन यथावस्थितागुण सिद्धावस्था की प्राप्ति के समय में एक साथ रहनेवाले हैं। इनके अतिरिक्त और भी जो नाना प्रकार के गुण हैं, उन गुणरूपी रत्नों की राशि होकर वह शाश्वत सिद्ध होगा ||६०४३ || १४- निर्धूम अग्नि के स्वप्न का फल मूल का अर्थ - 'निद्धमसिहिदंसणेणं' इत्यादि । निर्धूम अग्नि के देखने से वह अग्नि के समान पवित्र और पावक - पावनकर्त्ता - होगा। वह ध्यानरूपी अग्नि से अनादिकालीन आत्मिक मल का शोधन करेगा । शुक्लध्यान से રહેનારા છે. તે ઉપરાંત બીજા પણ વિવિધ પ્રકારના ગુણા છે તે ગુણુરૂપી રત્નાની રાશિ થઇને તે શાશ્વત સિદ્ધ થશે. (સૂ૦ ૪૩) ૧૪–નિર્ધમ અગ્નિના સ્વપ્નનું ફળ भूसना अर्थ - निमसिहिदसणेणं' इत्यादि. निघूभ अग्नि स्वप्न लेता प्रेम समन्नय थाय छे हैं, आज, मग्नि समान पवित्र, ब्लस्यभान, भने पावन तो जनशे. For Private & Personal Use Only int bumpe कल्प 'मञ्जरी 'टीका निर्धूमाग्निस्वप्नफलम्. ॥५१०॥ www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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